आयात शुल्क में कटौती को और बढ़ाने की तैयारी में सरकार
आयात पर लगने वाले 2 अन्य उपकरों में कटौती की तैयारी
कच्चे पाल्म ऑयल, सोयाबीन ऑयल और सूरजमुखी के तेल होंगे सस्ते
देश में खाद्य तेलों में महंगाई को कम करने के लिए सरकार ने दो उपकारों में कटौती को लेकर प्रयास शुरू कर दिए हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, कच्चे खाद्य तेल के आयात पर लगने वाले शुल्क में सरकार और कटौती कर सकती है. मामले से जुड़े लोगों के अनुसार, सरकार आयात पर लगने वाले 2 अन्य उपकरों में कटौती की तैयारी कर रही है. इससे इतर सरकार मौजूदा शुल्क कटौती को सितंबर से आगे बढ़ाने पर भी विचार कर रही है.
फिलहाल कच्चे खाद्य तेल के आयात पर 5.5 फीसदी शुल्क लगता है जो कि पहले के 8.25 फीसदी से कम है. मौजूदा कर प्रणाली में बेसिक कस्टम ड्यूटी शामिल नहीं जो कि खाद्य तेल के सभी वैरिएंट्स के लिए शून्य है. फिलहाल कर प्रणाली 2 उपकरों पर आधारित है. पहला, एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट सेस (एआईडीसी) और दूसरा है सोशल वेलफेयर सेस. फरवरी में सरकार ने एआईडीसी को 7.5 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया था नतीजतन कच्चे खाद्य तेल का आयात पर कुल शुल्क घटकर 5.5 फीसदी हो गया.
खाद्य तेल के आयात शुल्क में पहली कटौती जून 2021 में हुई थी. इसके बाद बेसिक कस्टम ड्यूटी को अगस्त व सितंबर में घटाया गया. उस समय 30 सितंबर तक ही इसे जारी रखने की योजना थी हालांकि खुदरा भाव में कमी नहीं होने के बाद सरकार ने इसे आगे भी जारी रखने का फैसला किया. वहीं, अक्टूबर 2021 में कच्चे पाल्म ऑयल, सोयाबीन ऑयल और सूरजमुखी के तल पर 31 मार्च 2022 तक सभी आयात शुल्क हटा दिए. इस कटौती ने कच्चे पाल्म ऑयल के आयात पर लगने वाले 24.75 फीसदी शुल्क को शून्य कर दिया. गौरतलब है कि भारत का 80 फीसदी पाल्म ऑयल का आयात कच्चे तेल के रूप में होता है.
सीबीडीटी व कस्टम के अधिकारियों का कहना है कि यह कटौती आगे भी जारी रह सकती है. उन्होंने कहा कि खाद्य तेल के उत्पादन और आपूर्ति में वैश्विक स्तर पर आ रही परेशानियों के कारण लगातार बढ़ रही कीमतों ने सरकार को शुल्क कटौती को बरकरार रखने के लिए सोचने पर विवश कर दिया है. एक अधिकारी के अनुसार, कटौती जारी रखने से मध्य और दीर्घावधि में घरेलू बाजार पर खासा असर पड़ेगा लेकिन इसके आलावा फिलहाल कोई विकल्प नहीं है. सरकार भी इस बात को लेकर चिंतित है कि लगातार आयात को बढ़ावा देने से आखिर में घरेलू रिफाइनिंग उद्योग और तेल उत्पादकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
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