सात महिलाओं के समूह ‘विस्तार-2’ चित्रकला प्रदर्शनी हुई सम्पन्न
बिहार और अन्य राज्यों की महिला कलाकारों ने दिखाया दम
सुतनी कला से लेकर मुखौटे प्रदर्शनी में बने आकर्षण का केंद्र
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हुआ था कार्यक्रम का आयोजन
महिला चित्रकारों ने लगाई खुद के पैसे से लगाईं प्रदर्शनी
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सात महिलाओं के समूह विस्तार -2 की ओर से चार दिवसीय चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन ललित कला अकादमी कला दीर्घा में किया गया. इस प्रदर्शनी में देश की ख्याति प्राप्त कलाकारों की चित्र प्रदर्शनी लगाई गई जिसमें महिला सशक्तिकरण के साथ प्रदेश की खुशहाली को प्रस्तुत किया गया है. महिला चित्रकारों की पेंटिंग में खालीपन,उमंग उत्साह का समावेश देखने को मिला.
इस चित्र प्रदर्शनी में पटना कि अनीता की पेंटिंग प्रदर्शित की गई है जन मानस को अपनी ओर आकर्षित करती है. अनीता कहती है कि आज साउथ में विनाले हो रहा है लेकिन हमारे राज्य में ऐसा कुछ नहीं दिखता है.रोजगार सृजन कला के क्षेत्र में कम हो रहा है इसके लिए निचले स्तर पर काम होना चाहिए. अनीता की पेंटिंग में कल्पना और कलात्मकता का बेजोड़ मेल देखने को मिलता है उनके इस्तेमाल किये गए रंग दर्शक को अपनी ओर खींचते हैं. अनीता की कृतियों में समाज को गढ़ने और बहने की चाहत लिए आशावादी दृष्टिकोण से ओत प्रोत हैं.
कार्यक्रम की संयोजिका और कलाकार सत्या सार्थ ने कहा कि इस प्रदर्शनी में लगे चित्र कलाप्रेमियों को जरूर कुछ सोचने पर मजबूर करेगा. हम सभी महिला चित्रकारों का अपने नजरिये से समाज के देखना और महसूस करना और रंग रेखाओं से कलाकृतियां बना कर लोगों के समक्ष इस प्रदर्शनी के माध्यम से पेश करना ही हमारा मकसद है.लोगों को इस चित्रकला प्रदर्शनी में आधुनिक जीवन में पारम्परिक प्रयोग भी देखने को मिले. सत्या के पेंटिंग में समाज को बांटने ,मनुष्य के बीच मनुष्य के लिए बढ़ती खाई कि ओर इशारा करती हैं.उनका कहना है कि मनुष्य को मनुष्य में बांटने की प्रथा ख़त्म होनी चाहिए.
इस कला प्रदर्शनी में भाग लेने वाले कलाकार संगीता ने ग्रामीण जीवन का प्राकृतिक व मानवीय संवेदनाओं की सार्थकता को पेश किया है. मृगतृष्णा, टूवर्ड्स आवर नेचर जैसी पेंटिंग ने दर्शकों को प्रकृति के वैसे चित्रों को दिखाया जो अमूमन कम देखने को मिलते हैं. संगीता के फूट प्रिंट को भी लोगों ने सराहा. वहीँ कर्नाटक की मीनाक्षी सद्गले ने समाज का झूठ और फरेब से बाहर नहीं निकलने की असमर्थता के आगे नतमस्तक समाज को अपने चित्रों के जरिये व्यक्त किया है.उन्होंने गाँवों में नंदी के साथ जीवन यापन के नजरियों को बखूबी चित्रित किया है.
नम्रता की पेंटिंग में सांस्कृतिक विरासत को छिन्न भिन्न करने वाले हाथों को रोकने की कोशिश करती नजर आती है. वहीँ सुजनी शिल्प कला अपनी पेंटिंग में स्थान देकर एक नई धारा के रूप में प्रयोग किया है. इनकी पेंटिंग में धागों का इस्तेमाल इनकी पेंटिंग में चार चाँद लगाते हैं साथ ही चित्रकला में शिल्प के प्रयोग को चिह्नित करते हैं.
अर्चना की पेंटिंग में सामाजिक सरोकार तथा समसामयिक जिज्ञासा दिखती है अर्चना ने किसानों की वर्तमान हालत को अपनी पेंटिंग ‘सोना है उगाया, हाथ कुछ नहीं आया’ है के जरिये व्यक्त करने कि कोशिश की है. अर्चना कुमार की पेंटिंग में बुद्ध की जर्नी के साथ ध्यान,भक्ति को दर्शाता है.
लखनऊ की प्रसिद्द चित्रकार हेमा की पेंटिंग समाज को आईना दिखाने का काम करते रहे हैं. हेमा कहती हैं कि उन्हें वैसी घटनाओं पर काम करना अच्छा लगता है जिनका सम्बन्ध जीवन से होता है जो प्रभावित करती हैं वैसे दृश्यों को बस उकेर देती हूँ,वे एक्रेलिक शीट पर ही एक्रेलिक कलर का इस्तेमाल करती हैं. उनका कहना है कि वे मशहूर कलाकार के जी सुब्रह्मण्यम के आर्ट को फॉलो करती हैं.
रवीन्द्र भारती