अहमदाबाद ब्लास्ट के 49 दोषियों में से 38 को फांसी
11 आरोपी आखिरी सांस तक सलाखों के पीछे रहेंगे कैद
13 साल बाद मिला पीड़ितों को इन्साफ
70 मिनट में हुए थे 21 धमाके
19 दिन में पकड़े गए 30 आतंकी
78 के खिलाफ मुकदमे की हुई थी शुरुआत
29 बरी और एक सरकारी गवाह बना
डीजीपी आशीष भाटिया के नेतृत्व में बनी थी स्पेशल टीम
गोधरा कांड के जबाब में किए गए थे ब्लास्ट
भारत के इतिहास में पहली बार एक साथ 38 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई है. इससे पहले केवल राजीव गांधी हत्याकांड ही था, जिसमें एक साथ 26 लोगों को सजा सुनाई गई थी. 8 फरवरी को सिटी सिविल कोर्ट ने 78 में से 49 आरोपियों को गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत दोषी करार दिया था. इनमें से एक दोषी अयाज सैयद को जांच में मदद करने के लिए बरी किया जा चुका है. 29 आरोपी सबूतों के अभाव में बरी हो चुके हैं. फैसले के वक्त कोर्ट ने धमाकों में मारे गए लोगों के परिजनों को एक लाख, गंभीर घायलों को 50 हजार और मामूली घायलों को 25 हजार रुपए की सहायता देने का भी आदेश दिया.
ब्लास्ट के बाद गुजरात की सूरत पुलिस ने 28 जुलाई और 31 जुलाई 2008 के बीच शहर के अलग-अलग इलाकों से 29 बम बरामद किए थे, जिनमें से 17 वराछा इलाके के और अन्य कतारगाम, महिधरपुरा और उमरा इलाके के थे. जांच में पता चला कि गलत सर्किट और डेटोनेटर की वजह से इन बमों में विस्फोट नहीं हो पाया था. ये ब्लास्ट आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन और बैन किए गए स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया से जुड़े लोगों ने किए थे. विस्फोट से कुछ मिनट पहले, टेलीविजन चैनलों और मीडिया को एक ई-मेल मिला था, जिसे कथित तौर पर ‘इंडियन मुजाहिदीन’ ने धमाकों की चेतावनी दी थी. पुलिस का मानना था कि आईएम के आतंकियों ने 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के जवाब में ये धमाके किए. इस मामले के एक अन्य आरोपी यासिन भटकल पर पुलिस नए सिरे से केस चलाने की तैयारी में है.
गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर जेसीपी क्राइम के नेतृत्व में अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की एक विशेष टीम का गठन किया गया था. डीजीपी आशीष भाटिया ने इस टीम को लीड किया. वहीं, इस टीम में अभय चुडास्मा और हिमांशु शुक्ला ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. मामलों की जांच तत्कालीन डीएसपी राजेंद्र असारी, मयूर चावड़ा, उषा राडा और वीआर टोलिया को सौंपी गई थी. अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की इस विशेष टीम ने 19 दिनों में मामले का पर्दाफाश किया था और 15 अगस्त 2008 को गिरफ्तारी का पहला सेट बनाया था.
अदालत की ओर से सभी 35 एफआईआर को एक साथ जोड़ देने के बाद दिसंबर 2009 में 78 आरोपियों के खिलाफ मुकदमे की शुरुआत हुई थी. इनमें से एक आरोपी बाद में सरकारी गवाह बन गया था. मामले में बाद में चार और आरोपियों को भी गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उनका मुकदमा अभी तक शुरू नहीं हो पाया है. मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन ने 1100 गवाहों का परीक्षण किया. सरकारी वकीलों में एचएम ध्रुव, सुधीर ब्रह्मभट्ट, अमित पटेल और मितेश अमीन, जबकि बचाव पक्ष से एमएम शेख और खालिद शेख आदि शामिल रहे.
स्पेशल टीम ने महज 19 दिनों में 30 आतंकियों को पकड़कर जेल भेज दिया था. इसके बाद बाकी आतंकी देश के अलग-अलग शहरों से पकड़े जाते रहे. अहमदाबाद में हुए धमाकों से पहले इंडियन मुजाहिदीन की इसी टीम ने जयपुर और वाराणसी में भी धमाकों को अंजाम दिया था. देश के कई राज्यों की पुलिस इन्हें पकड़ने में लगी हुई थी, लेकिन ये एक के बाद एक ब्लास्ट करते चले गए. अहमदाबाद धमाकों के दूसरे दिन, यानी 27 जुलाई को सूरत में भी सीरियल ब्लास्ट की कोशिश की गई थी, लेकिन टाइमर में गड़बड़ी की वजह से ये फट नहीं पाए थे.
इस मामले में सूरत में 15 और अहमदाबाद में 20 शिकायतें दर्ज की गई थीं. देश के अलग-अलग शहरों से कुल 78 लोगों को अरेस्ट किया गया था. ब्लास्ट में शामिल आठ अन्य आरोपियों की तलाश अब भी जारी है. सीरियल ब्लास्ट का मास्टरमाइंड यासीन भटकल दिल्ली की जेल में, जबकि अब्दुल सुभान उर्फ तौकीर कोचीन की जेल में बंद है.
38 को फांसी तक पहुंचाने वाले बोले अफसर
जांच टीम 4 महीने घर नहीं जा पाई
सैकड़ों किमी के सफर में पानी पीने भी नहीं रुकते
26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के आरोपियों को आखिरकार सजा मिल गई है. कोर्ट ने 49 आरोपियों में से 38 को फांसी की सजा सुनाई है, जबकि 11 आरोपी ताउम्र जेल में रहेंगे. पहली बार किसी केस में एक साथ इतने आरोपियों को फांसी सुनाई गई है. इस केस के लिए बनी जांच टीम में शामिल रहे पुलिस अधिकारी आरवी असारी से बात की. अहमदाबाद के जॉइंट पुलिस कमिश्नर असारी ने बताया कि किस तरह पूरे देश से आतंकियों को तलाश करने के बाद पकड़ा गया.
पुलिस कमिश्नर असारी ने कहा कि 26 जुलाई, 2008 को जब अहमदाबाद में सीरियल बम विस्फोट हुआ था, तब मैं गोधरा में ड्यूटी पर था. मेरे पास फोन आया कि आप तुरंत अहमदाबाद क्राइम ब्रांच को रिपोर्ट करें. अगले दिन 27 तारीख को मैं अहमदाबाद क्राइम ब्रांच में मौजूद था. पूरे राज्य में इस आतंकी हमले की चर्चा हो रही थी. हमारी जांच टीम को यह पता लगाने का टास्क दिया गया कि इस हमले के पीछे कौन हैं और उन्हें दंडित कराया जाए.’
‘मेरे वरिष्ठ अधिकारी अभय चुडासमा ने मुझे यह पता लगाने का काम सौंपा कि आतंकवादियों ने ब्लास्ट्स में यूज सामग्री कहां तैयार की थी और बम कहां बनाए गए थे. साथ ही इसके सारे सबूत इकट्ठा करने को कहा. इस बीच कई अधिकारी मेरी टीम में शामिल हो गए और हम धीरे-धीरे यह पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि आरडीएक्स प्लास्टिक एक्सप्लोसिव को रखने की जगह और इससे जुड़ी संदिग्ध सामग्री कहां मिल सकती है. इस दौरान पर मुझे एक लिंक मिला, जिससे पता चला कि आतंकवादियों ने दाणी लिमडा इलाके के एक घर में बम रखा था, इसकी सूचना मैंने अपने अधिकारी को दी और हम वहां पहुंच गए. उस समय हमें जो टिप्स मिले थे, उनसे आतंकवादी गतिविधि के पक्के सबूत हासिल हो गए.
टीम के ऊपर जल्द से जल्द पूरा केस खोलने का दबाव था. इसके चलते हमने चार महीने तक दिन-रात लगकर काम किया. हालत ऐसी थी कि हम सुबह नौ बजे खाना खा लेते थे और फिर पूरा दिन और रात ऐसे ही लगे रहते थे. चार महीने तक हम घर भी नहीं गए. हमने पूरे देश में छिपे ब्लास्ट्स से जुड़े आतंकियों का पता लगाया और उन्हें अहमदाबाद क्राइम ब्रांच लाया गया. हम एक आरोपी को लेने कर्नाटक पहुंचे. हमें कहा गया था कि आरोपी को ले जाते समय इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी आप पर हमला कर सकते हैं. आपको पीने के पानी के लिए भी वाहन रोकना नहीं है. हमने वही किया, कर्नाटक से चलने के बाद वाहन 1163 किलोमीटर दूर आकर अहमदाबाद में ही रुके. इसी तरह हम उज्जैन से भी आतंकवादियों को लाए.
अहमदाबाद के जॉइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस, आर.वी. असारी ने बताया था कि बम बनाने में अमोनियम नाइट्रेट, वुडन फ्रेम, बैटरी, अजंता वॉच जैसे सामान का इस्तेमाल किया गया था. इससे पहले हमने कभी भी बम बनाने में इस तरह के सामानों का यूज होते नहीं देखा था. गुजरात पुलिस की यह अब तक की सबसे बेस्ट इन्वेस्टिगेशन में से एक है, क्योंकि यह गुजरात पुलिस के लिए एक बहुत बड़ा चैलेंज था, लेकिन हमारी टेक्निकल नेटवर्क टीम और इंटेलिजेंस बहुत मजबूत था. इसके लिए करीब 350 पुलिस अफसरों की टीम लगाई गई थी. आखिरकार टीम ने अपना बेस्ट दिया और हम गुनहगारों को सजा दिलाने में कामयाब हुए.
अहमदाबाद ब्लास्ट के फांसी वाले 6 आतंकी भोपाल जेल में
मास्टरमाइंड नागौरी भी यहीं बंद
बोला- संविधान मायने नहीं रखता, कुरान का फैसला मानेंगे
अहमदाबाद बम ब्लास्ट-2008 मामले में 38 आतंकियों को फांसी की सजा सुनाई गई है. इनमें से सिमी के 6 आतंकी भोपाल की केंद्रीय जेल में बंद हैं. इनमें ब्लास्ट का मास्टरमाइंड सफदर नागौरी भी शामिल है. फांसी की सजा की खबर मिलने के बाद भी नागौरी नॉर्मल दिख रहा है. उसने जेल अधीक्षक दिनेश नरगावे से कहा कि संविधान हमारे लिए मायने नहीं रखता, हम कुरान का फैसला मानते हैं.
अधीक्षक के मुताबिक, केंद्रीय जेल भोपाल में 5 साल पहले जब नागौरी को शिफ्ट किया गया था, तब वह जेल अधिकारियों-कर्मचारियों को खुलेआम धमकी देता था कि तुम्हारी इतनी औकात नहीं है, जो हमें ऑर्डर करो. वह राष्ट्रीय पर्व, राष्ट्रगान के दौरान अजीब हरकतें करता है. अधिकारियों को बोलता है कि हम देशभर की जेल में घूम चुके हैं. जेल का कायाकल्प कर दूंगा…. वो कई बार भोपाल की जेल से दूसरी जेल में शिफ्ट करने के लिए कोर्ट में पिटीशन भी लगा चुका है. उसे भोपाल जेल में अलग बैरक में रखा जाता है. नागौरी प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया का राष्ट्रीय महासचिव रहा है.
भोपाल जेल में बंद इन आतंकियों को मिली है सजा
1. सफदर नागौरी (फांसी)
2. शिवली (फांसी)
3. शादुली (फांसी)
4. आमिल परवेज (फांसी)
5. कमरुद्दीन नागौरी (फांसी)
6. हाफिज (फांसी)
7. अंसाब (उम्रकैद)
सफदर नागौरी उज्जैन के महिदपुर गांव का रहने वाला है. उसके पिता क्राइम ब्रांच के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर रहे हैं. साल 2001 में सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद नागौरी अंडरग्राउंड हो गया था. उज्जैन के महाकाल पुलिस थाने में नागौरी के खिलाफ 1997 में पहला मुकदमा दर्ज किया गया. उसे 11 दिसंबर 2000 को भगोड़ा घोषित किया गया था.
देशभर में नागौरी के खिलाफ 100 से अधिक अपराध दर्ज हैं. वर्ष 2008 में अहमदाबाद में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों का वह मास्टरमाइंड था. 26 जुलाई 2008 को हुए इन धमाकों में 57 लोगों की मौत हुई थी. इसमें सफदर नागौरी की बड़ी भूमिका थी. नागौरी को पुलिस ने 26 मार्च 2008 को इंदौर के संयोगितागंज के एक फ्लैट से गिरफ्तार किया था. ‘स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया’ का गठन वर्ष 1977 के अप्रैल माह में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था. अमेरिकी राज्य इलिनॉय के एक प्रोफेसर मोहम्मद अहमदुल्लाह सिद्दीकी को संगठन का संस्थापक बताया जाता है. भारत में इस संगठन पर वर्ष 2001 में प्रतिबंध लगा दिया गया था. फिर दो अलग-अलग बार इसे प्रतिबंधित करने के अध्यादेश भारत सरकार ने जारी किए. तब से इसकी गतिविधियां पूरी तरह से भूमिगत हैं.
सिमी पर पहला प्रतिबंध 27 सितंबर वर्ष 2001 में अमेरिका में साल 2001 में हुए 9/11 हमले के बाद लगाया गया था. यह प्रतिबंध इस संगठन पर अगले दो सालों तक चलता रहा यानी सितंबर 2003 तक. इस दौरान संगठन में सक्रिय भूमिका निभाने के आरोप में कई लोगों को भारत के विभिन्न राज्यों से गिरफ्तार किया गया. उन पर चरमपंथ और संगीन अपराधों को रोकने के लिए बनाए गए विभिन्न कानूनों के तहत कार्रवाई हुई.
अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट मामले के दोषियों में कोटा के तीन युवक भी शामिल थे. शहर के आम लोगों के बीच रह रहे ये तीन आतंकी थे इमरान, अतीकुर रहमान और महेंदी हसन अंसारी. अदालत ने तीनों को आखिरी सांस तक जेल में रहने की सजा सुनाई है.
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