पटना .राजधानी का कहना जब राज्य के कोने कोने में चल रहा है पानी का खेल. नकली दवा, नकली शराब, नकली बैटरी, नकली साबुन नकली दवाई इत्यादि का खेल .कई ऐसे सामान है जो नकली बिकते है पर अब नकली उत्पादों के व्यवसाइयों ने पानी भी नकली ब्रांड नाम से बेच रहे है.हर दिन पानी की बोतल की नई-नई कंपनियां मार्केट में उतर रही हैं, जिनसे कंपनी को मुनाफा होता है.वहीं उपभोक्ता जल्दीबाजी में बिना कोई जांच पड़ताल किए इस पानी को खुले पानी से बेहतर समझ कर महंगी कीमतों में पी रहे हैं. जबकि हकीकत तो यह है कि खुले पानी से यह पानी भी कम खतरनाक नहीं है, क्योंकि यह पानी कहाँ से आया इसका जवाब संबंधित विभाग के पास नहीं है.
20 करोड़ लीटर प्रतिदिन निकलता है पानी
पटना में शुद्ध भूजल 160 से 170 मीटर तक की गहराई में मिलता है. यहां नदी, तालाब एवं ऊपरी सतह का जल पीने के लायक नहीं रह गया है. आज लगभग 20 करोड़ लीटर प्रतिदिन पानी निकाला जा रहा है. जिससे पानी का लेयर प्रतिदिन 6 से 7 फ़ीट नीचे जा रहा है. अब ये पानी सरकार कितना निकाल रही है और प्राइवेट बोरिंग से कितना इसका अनुमान लगाना मुश्किल है लेकिन पानी की बिक्री में कई ऐसे व्यवसायी लगे है जो अपना खजाना भर रहे है.
ऐसे हो रही गड़बड़ी
बोतलबंद पानी के नाम पर फर्जी लाइसेंस.
आईएसआई मार्का लगाकर ब्रांड्स की धोखाधड़ी.
मापदंडों के मुताबिक संयंत्रों में उपकरणों की कमी बीआईएस को हर हफ्ते, महीना, छमाही रिपोर्ट भेजने का नियम.
बोतल में पानी भरने के पहले 6 बार जांच करने के नियम में लापरवाही.
जल संकट का उठा रहे है फायदा
विभिन्न जगहों पर जलसंकट व शुद्ध पेयजल की कथित अनुपलब्धता को देखते हुए पानी बेचने वाली नई-नई कंपनियां बाजार में आए दिन उतर रहीं हैं. ये कंपनियां किस मानक स्तर का पानी बंद बोतलों व जार में बेच रहीं हैं इसकी जांच पड़ताल करने वाले विभाग आंखें मूंदे हुए हैं, अगर इनके मानक स्तर की जांच की जाए तो ये पानी सादे पानी से ज्यादा हानिकारक साबित होंगे. राजधानी में बेचे जा जा रहे पानी के बोतलों पर आई एस आई मार्क भी लगा है पर वे भारतीय मानक ब्यूरो से रजिस्टर्ड नहीं है.
नहीं होता निर्धारित मापदंडों का पालन
जानकारी के मुताबिक बोतलबंद पानी विक्रय की कंपनी स्थापित करने के लिए प्रशासन द्वारा निश्चित मापदंडों को निर्धारित किया गया है. इसका पालन कराने प्रशासन द्वारा बकायदा अधिकारी कर्मचारी तैनात किये गये हैं ताकि गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ न हो और बोतलबंद व पानी का जार खरीदकर पीने वालों के स्वास्थ्य पर इसका वितरीत असर न पड़े लेकिन पानी की गुणवत्ता की जांच नहीं हो रही जिस कारण कुकुरमुत्ते की तरह पानी बेचने वाली कंपनियां दिन पर दिन बढ़ती जा रहीं हैं.
निर्धारित मूल्यों से अधिक रेट में बिक रहे शीतल पेय
बस स्टैंड और छोटे रेलवे स्टेशन पर ये पानी के कारोबारी अपना अड्डा जमाये हुए है जहां मिनरल की जगह सादा पानी भी 20 रुपये में बेचा जा रहा है . इन पानी बोतलों पर निर्माण तिथि कहीं भी नही लिखी जाती है .जिसके चलते उपभोक्ता यह जान ही नही पाता है कि बोतल में पानी किस तिथि को पैक किया और वह इसका उपयोग कब तक कर सकता है इसकी कोई जानकारी उसे नहीं रहती और वह इसका उपयोग कर संक्रमित बीमारियों का शिकार हो रहा है .
पर्यावरण के लिए भी बना खतरा
लोगों को सुलभता से पेयजल उपलब्ध कराने के लिये प्लास्टिक कंटेनर, बोतल बाजार में प्रचलन में हैं लेकिन यही प्लास्टिक के कंटेनर, बोतल या फिर प्लास्टिक के ग्लास जिसे पानी पीने के बाद उपभोक्ता सड़कों पर फेक देते है जो पर्यावरण के लिये खतरा पैदा कर रहें है वहीं मुक बधिर जानवर इसे खाकर काल के गाल में समा रहे है तथा प्लास्टिक के ग्लास नाले नालियों में फंसकर गंदगी को भी बढ़ावा दे रहे हैं, इसके बावजूद संबंधित विभाग द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है.
हर रोज एक नई कंपनी की बोतल
बोतल बंद पानी के कारोबार में लगे लोग कहते है कि एक ही कंपनी हर रोज नया नाम से पानी बाजार में लाते है. हमें तो 4 से 5 रुपये के मार्जिन पर मिलता है उसमें भी हमे पानी के बोतल को ठंढा रखने के लिए 2 रुपये खर्च हो जाते है.हम तो कम कमाते है पर वो ज्यादा कमाते है. शहर में बोतल बंद पानी बेचने वाली वैध-अवैध कंपनियों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है. ये कंपनियां प्लांट में 6 इंच के 4 से 5 बोर करवाकर रोजाना लाखों लीटर पानी निकाल रही हैं. इसके चलते शहर का भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है. इस समस्या को देखते हुए महापौर ने पीएचईडी विभाग को पत्र लिखकर कंपनियों के बोर बंद करवाने की मांग की है.
टैंकर से भी बेच रहे हैं पानी
ये कंपनियां न सीलबंद बोतल, जार बल्कि टैंकर के जरिए भी पानी का कारोबार कर रही हैं. वे अपने बोर से टैंकर भरकर जरूरतमंदों को ऊंची कीमतों पर बेच रहे हैं.
सिर्फ 15 कंपनियां ही पंजीकृत
प्रदेश में सीलबंद बोतल में पानी बेचने वाली सिर्फ 15 कंपनियां ही रजिस्टर्ड हैं. जबकि अनरजिस्टर्ड कंपनियों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है. अधिकतर पानी के जार तो बिना ट्रेडिंग लाइसेंस के ही बिक रहे हैं. इन पर कोई लगाम नहीं है. ये सारी कंपनियां भूजल का दोहन कर पानी का कारोबार कर रही हैं. कुछ माह पहले खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने दर्जनभर से अधिक कंपनियों के पानी सैम्पल लेकर जांच कराई थी. इनमें से आधा दर्जन ब्रांडेड कंपनियों के बोतलबंद पानी अशुद्ध पाए गए. इन कंपनियों पर मामूली जुर्माना ठोक कर उन्हें फिर से पानी का कारोबार करने की छूट दे दी गई.
रेल नीर, माउंट कैलाश, किन्ले, पवन एक्वा, एक्वाफिना, किंगफिशर, एग्लो, बिबो, हेल्थ प्लस, बोन एक्वा, बेली, जिंगल, बिहारी , ब्रेसली, बिसलेरी, प्यूमा जैसे कई उत्पाद है जिनके नामों के अक्षरों में थोड़ा परिवर्तन कर धड़ल्ले से पानी बेचे जा रहे है.बिसलेरी के स्टेट हेड संजीव कुमार का कहना है की ये पानी के व्यवसायी बड़ी ही चालाकी से कॉपी कर अपने उत्पाद को बेचते है .हम लोगों से यही कह सकते है वे उत्पादों को अच्छी तरह देख कर खरीदे.
पानी से कितनी है कमाई
एक बोतल पानी
पानी की कीमत –3.20 रुपये
मेनटेनेन्स -1.00 रुपये
ट्रांसपोटेशन -1.00
इंटरेस्ट ऑन कॅपिटल -0.60
कुल खर्च – 6.20
सेलिंग प्राइस ….20.00
मुनाफा . 13.80 रुपये
15 लीटर के जार -40 रुपया लोकल
खर्च ……………..8.20
मुनाफा—————31.80
अगर आप ब्रांडेड कंपनी के बड़े बोतल खरीदते है तो उसके लिए 80 -90 रुपये और अगर लोकल का बोतल लेते है तो आपको 35 से 45 रुपये खर्च करने पड़ते है.चिल्ड वाटर का खेल भी बड़े हीचालाकी से चल रहा है.