वर्तमान में लगभग 55 मिलियन लोग मनोभ्रंश के साथ जी रहे हैं,
नई दिल्ली : वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि कोविड ‘मनोभ्रंश महामारी’ को तेज करेगा। विशेषज्ञ इशारा करते हैं कि वायरस कुछ रोगियों में दीर्घकालिक मस्तिष्क क्षति का कारण भी बन सकता है।
वर्तमान में लगभग 55 मिलियन लोग मनोभ्रंश के साथ जी रहे हैं, यह आंकड़ा दशक के अंत तक तक बढ़ने की भविष्यवाणी की गई है।
लंदन में क्लाइव कुकसन द्वारा वैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों ने चेतावनी दी है कि कोरोनोवायरस के मस्तिष्क पर अपक्षयी प्रभाव “मनोभ्रंश की महामारी” में आग में घी डालने का काम करेगा जो दशक के अंत तक को प्रभावित करेगा।
डिमेंशिया संघों के वैश्विक महासंघ, अल्जाइमर डिजीज इंटरनेशनल ने समस्या के पैमाने को बेहतर ढंग से समझने और इससे निपटने के तरीकों की सिफारिश करने के लिए एक विशेषज्ञ कार्य समूह का अनावरण किया।अब तक के तमाम अध्ययनों के आधार पर विशेषज्ञों ने बताया है कि सार्स-सीओवी-2 वायरस और इसके म्यूटेशन के कारण संक्रमितों के मस्तिष्क और न्यूरोलॉजिकल गतिविधियों पर भी बुरा प्रभाव देखने को मिल रहा है। इसका असर कम समय या फिर लंबे वक्त के लिए भी हो सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक कोविड-19 संक्रमित एक तिहाई रोगियों ने कई तरह के तंत्रिका संबंधी लक्षणों का अनुभव किया। इसके दीर्घकालिक प्रभाव के तौर पर भविष्य में लोगों को स्ट्रोक जैसी दिक्कतों का खतरा बढ़ जाता है।
एडीआई के मुख्य कार्यकारी पाओला बारबारिनो ने कहा, “हम लोगों को अनावश्यक रूप से डराना नहीं चाहते हैं, लेकिन दुनिया भर के कई डिमेंशिया विशेषज्ञ डिमेंशिया और कोविड -19 के न्यूरोलॉजिकल लक्षणों के बीच की कड़ी से गंभीर रूप से चिंतित हैं।”