कोरोना के व्यापक सवाल: उत्तर कौन देगा?
पटना,27 मई. कोरोना काल में आम इंसान की दयनीय स्थिति और विवशता को देखने के बाद जो प्रतीत होता है वह किसी से छुपा नही है. मनुष्य की निरंतर दयनीय होते हालातों के बाद भी सरकारी उदासीनता को देखने के बाद बिहार के पूर्व DGP अभ्यनन्द ने सोशल मीडिया पर अपनी बातें शेयर की हैं. उन्होंने वर्तमान परिवेश में अपने अंदर उठे करुणा के भावों को जिस तरह व्यक्त किया है हम यहाँ उसे पेश कर रहे हैं:
कोरोना का दौर अति करुणामयी होता जा रहा है. निरीह की भांति कभी समाज की विवशता को देखता हूँ तो कभी सरकारी प्रतिक्रिया को.
सरकार में मुख्यतः तीन स्तर होते हैं. सबसे ऊपर हैं मंत्रीगण जिन्हें नियम-कानून की बारीकियों को समझाने के लिए IAS पदाधिकारीगण होते हैं, जो “ब्यूरोक्रेसी” का अंग भी होते हैं. यह दोनों मिलकर नीति निर्धारण करते हैं. पश्चात इसके, नीति को क्रियान्वित करने के लिए उस विभाग के निदेशालय को कार्य दिया जाता है. निदेशालय में उस विभाग के तकनीकी जानकार होते हैं जो नीति और तकनीक का समन्वय कर, जनता के हित में कार्यवाई करते हैं.
सरकार के सभी विभागों का कार्य इसी प्रक्रिया से किए जाने का प्रावधान है. समय के साथ, पुलिस को छोड़ कर, सभी निदेशालय ध्वस्त हो चुके हैं. पुलिस का निदेशालय खाका स्वरुप ही सही, इसलिए बचा हुआ है क्योंकि इसकी संरचना एक कानून के तहत की गई है जिसे सरकारी आदेश से निरस्त नहीं किया जा सकता है अन्यथा इस निदेशालय का ढाँचा भी ढूंढने से नहीं मिलता.
यही कारण है कि कोरोना की इस त्रासदी में जब जनता अथवा मीडिया दुखित होकर सवाल पूछती है, तो जवाब देने के लिए मंत्री आते हैं या हॉस्पिटल के डॉक्टर. स्वास्थ्य निदेशालय जो क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी लेता है, वह विलुप्त हो चुका है. अतः अदृश्य रहता है. प्रश्न पास होकर सीधे अस्पताल प्रबंधन के पास आ जाता है.
बहरहाल सरकार का जो भी स्तर नीतिगत निर्णय ले कर क्रियान्वयन कर रहा है, उसे समाज और मीडिया के सामने सवालों के उत्तर देने के लिए आना चाहिए.
साभार : अभ्यानंद, Ex DGP Bihar
प्रस्तुति : ओ पी पांडेय