‘चांदी के जूते’ ने गुदगुदाया, ‘दुःख-दरिया’ ने भरा आंखों में सैलाब

By om prakash pandey Mar 3, 2020

शताब्दी समारोह के दूसरे दिन ‘दुख दरिया’ और ‘चांदी के जूते’ ने दिया ब्यापक सन्देश

आरा. जैन स्कूल शताब्दी समारोह सह भोजपुर नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन भी रंगारंग कार्यक्रम के साथ 4 नाटकों का मंचन सम्पन्न हुआ. कार्यक्रम की शुरुआत “नमो नमो” गाने पर जैन स्कूल के बच्चो ने सामूहिक नृत्य के जरिये किया. संस्कृतिक सन्ध्या की दूसरी प्रस्तुति हर्षिता विक्रम ने ‘रंग सारी गुलाबी चुनरियां रे’ लोकगीत पर कर अपना जलवा बिखेर दिया. उसके बाद असम के कलाकारों के द्वारा लोक नृत्य बिहू की प्रस्तुति ने आयोजन स्थल पर उपस्थित सभी लोगों के अंदर सांस्कृतिक ऊर्जा भर दी. सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद नाटकों का दौर चला.




दूसरे दिन की सन्ध्या 4 नाटकों का मंचन किया गया. DMC एक्टिंग अकादमी आरा के कलाकारों के द्वारा रंजीत कपूर लिखित नाटक ‘चांदी का जूता’ किया गया. यह नाटक देश के कोने कोने से आये कलाकारों के प्रदर्शन मात्र के लिए था. यह नाटक प्रतियोगिता में नही था. नाटक का निर्देशन ओपी कश्यप ने किया था,संगीत राजा बसंत बहार,हर्षिता विक्रम व उनके साथी कलाकार का था. प्रकाश परिकल्पना ओपी पांडेय व आलोक सिंह का था. नाटक की मुख्य भूमिका में ओपी कश्यप ने बेहतरीन अभिनय किया और अपने अभिनय से दर्शकों को लोट-पोट कर दिया. वही मुनीम और लड़की के बाप में रोल में अंकित ने शानदार अभिनय से खूब तालियां बटोरी. नाटक का सूत्रधार बना , बहु बनी अदिति राज, और माँ के रोल में स्मृति भारती ने दर्शकों के बीच अपनी बेहतरीन अदाकारी का परिचय दिया. अन्य कलाकारो में मुकेश, प्रीतम सिंह, आकाश, अमृता, सावन, प्रकाश, प्रिंस, सुधीर जैन, अपूर्वा, रोनी का छोटे क़िरदारों में भी अच्छा प्रदर्शन था.

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश देता नाटक दहेज प्रथा और अपने पुरखों के सम्पति पर इतराने वालों पर करारा प्रहार था. हास्य व्यंगय के जरिये इतने इतने बड़े संदेश को कलाकारों ने जिस ढंग से पेश किया वह निर्देशक के सोच को सार्थक करता है. भोजपुरी लोकधुनों से सजा यह नाटक दर्शकों को अपना सा लगा तभी तो छोटी-छोटी अदाओं पर भी उचक-उचक के हँसते कूदते तालियां बजाते दिखे.

शो वाले नाटक के बाद प्रतियोगिता वाले नाटकों में धनबाद की प्रस्तुति हुई. उसके बाद हिमाचल प्रदेश के स्टेपको नाहन ग्रुप ने “दुःख दरिया” मंचन किया. शाहिद नदीम द्वारा लिखित इस नाटक का निर्देशक रंजीत सिंह कंवर व वसीम खां ने किया था. कलाकारों में जोगिया बने मनीष सैनी, मीरा माई बनी काजल बादल, कैसर बनी फरजाना सैयद ने अपने अभिनय का झंडा बुलंद किया. अन्य किरदारों इंद्रजीत कौर, कौशल, मनीष, मोनू यादव, नागेंद्र सैनी व रंजीत सिंह कंवर ने भी दर्शको के बीच अपनी पहचान कायम की.

नाटक सरहदों के आर पार की कथा थी. एक मुल्क से शौहर द्वारा बांझ कहकर तलाक देने के बाद एक औरत जान देने दौरान नदी से बहते हुए दूसरे मुल्क में बच के पहुँच जाती है. दूसरे मुल्क की पुलिस उसे खुफिया एजेंट समझ कर जेल में बंद कर देती है लेकिन जब वह अपने आप को एजेंट कुबूल नही करती है तो एक पुलिसकर्मी उसका बलात्कार कर देता है. नौकरी जाने के डर के बाद जब वह कर्मी गिड़गिड़ाता है तो वह उसे अपना बच्चा कह देती है और फिर जेल में ही जब बच्ची जन्म लेती है. पुलिस को बदनामी से बचाने के बाद पुलिस उसे अवैध रूप से उसके मुल्क में जाने के लिए आजाद कर बोर्डर तक पहुँचा देती है.

बॉर्डर एरिया पर ही एक दरगाह है जहाँ वह रात गुजारती है और फिर अगले दिन जब अपने मुल्क जाने को तैयार होती है दूसरे मुल्क की पुलिस बच्ची को छोड़ वापस आने को कहती है. दलील यह है कि अवैध तरीके से जाने के दौरान उसे तो साबित कर देंगे कि वह उस मुल्क की है लेकिन जन्म लेने वाली बच्ची किस कौम और किस देश की है यह कैसे साबित होगा?

एक माँ से बच्ची की बिछड़ने की कथा बॉर्डर लाइन पर जीने वालों की जिंदगी गोलियों से मर जाती है, बच जाती है तो मानव के अंदर छुपे राक्षसों से छलनी हो जाती है और जो अपने मुल्क नही जा पाती वह दरगाह जैसे पावन जगहों पर माई बनकर पूजी जाती है. मानवीय संवेदना को झकझोरने वाला यह नाटक सचमुच कई सवालों को छोड़ गया जेहन में.

चौथा नाटक मलेम क्लचतुरे, इम्फाल कीडोबागी की प्रस्तुति रही. “इतोमता ता सिजदुइनो” मणिपुरी भाषा में मंचित नाटक हुआ. जिसका हिंदी अर्थ होता है मैं “आत्माहत्या क्यों करू” नाटक कई घटनाओं से डिप्रेशन में पड़े एक इंसान की कहानी थी जो हमेशा जिंदगी को खत्म करने की सोचते रहता है लेकिन उसे तरह तरह की अंदर की आवाजें जब जागृत करती है तो वह अपना निर्णय बदलता है. प्रकृति और जीवन के बीच से उसे ये सकारात्मक आवाज सुनाई देती है. नाटक का वेषभूषा संगीत व प्रकाश उम्दा था. वांगलेन कुमार द्वारा निर्देशित इस नाटक के लेखक संतो एम का था. कलाकारों में एंथम दिवाकर सिंह, यूमन बाला देवी, वांग लेन, सुनीता देवी, ओलिविया देवी, मोनालिसा चाउ, प्रियंका चाउ, प्रिया चाउ व अन्य थे. मणिपुरी भाषा मे होने के बाद भी दर्शकों ने बड़े ध्यान से देखा.

आरा से ओ पी पाण्डेय की रिपोर्ट

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