कई शिक्षाविदों सहित देश के कई प्रदेश से आये कलाकारों ने दी प्रस्तुति
पहले दिन 3 नाटकों का हुआ मंचन
आरा. श्री आदिनाथ ट्रस्ट एवं हर प्रसाद दास जैन स्कूल शताब्दी समारोह का आगाज रविवार को धूमधाम से हुआ. भोजपुर नाट्य महोत्सव से हुआ या नाट्य महोत्सव 01-05 मार्च तक जैन स्कूल के प्रांगण में ही चलेगा. रविवार से प्रारंभ हुए इस महोत्सव का उद्घाटन VKSU के वाइस चांसलर प्रोफेसर देवी प्रसाद तिवारी एवं प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष आलोक चंद्र जैन ने किया. VC ने अपने संबोधन भाषण में का शिक्षण संस्थानों की दयनीय होती व्यस्था पर दुख व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि माता पिता बच्चों को जन्म देते हैं तो उनका सबसे बड़ा कर्तव्य और धर्म अपने बच्चों को समुचित शिक्षा देना होता है. बच्चों की प्रारंभिक पाठशाला माता-पिता और उसका घर ही होता हैं जहां उनके चरित्र का निर्माण होता है. यदि प्रारंभ से ही बच्चों पर ध्यान दिया गया तभी नैतिकता का विकास होगा. वही आलोक चंद्र जैन ने कहा कि पुराने जमाने में भोजपुर में स्कूल नहीं होने के कारण कई लोग नहीं पढ़ पाते थे. उन्हें जिले के बाहर जाना पड़ता था. ऐसे मौके पर दानवीर हर प्रसाद दास जैन ने जैन स्कूल खोलने के लिए जमीन देकर जैन स्कूल जैसा शिक्षण संस्थान खुलवाया. यहां से पास हुए बच्चे आज देश-विदेश में जिले का नाम रौशन कर रहे हैं इस मौके पर VKSU के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ प्रो. रणविजय कुमार सिन्हा ने कहा कि देश में जो शाश्वत कर्म पंडित मदन मोहन मालवीय और सैयद साहब ने किया उस पुण्य कर्म को शाहबाद क्षेत्र में स्व. दानवीर बाबू हर प्रसाद दास जैन ने किया.
इस मौके पर स्कूली बच्चों ने स्वागत गान से आगत अतिथियों का सत्कार किया. “मन की वीणा से गूंजे ध्वनि मंगलम….” हितेश कुमार ने पेश किया. वही डांस इज लाइफ डांस एकेडमी के नन्हे कलाकारों आद्रिका कौशल,वंशिका,माही,आदिका,प्रीति,ऐना और आयुषी ने गणेश वंदना, मनमोहन नृत्य नाटिका के जरिये दिखाकर उपस्थित लोगों का दिल मोह लिया. इस मौके पर सुशील सिंह ने एक लाइव ज्ञान गाया जिसमें उनके साथ तबला पर राहुल,ऑर्गन पर राहुल और गायन में अभिषेक, डांस में अखिलेश ने भाग लिया. कोरियोग्राफी आशुतोष दीक्षित ने की थी. इस मौके पर आरा रंगमंच के कलाकारों ने भी समूह लोकनृत्य की प्रस्तुति दी. बताते चलें कि शताब्दी समारोह के इस भव्य सांस्कृतिक आयोजन का कोर्डिनेसशन आरा रंगमंच ही कर रहा है.
बताते चलें कि 17 राज्यों से आए कलाकार महोत्सव में हिस्सा ले रहे हैं. जैन स्कूल ने अपने पुराने गौरव को फिर से खड़ा करने के लिए इस साल शताब्दी समारोह पर पूर्ववर्ती छात्रों को भी बुलाया है. बताते चलें कि 2018 में पूर्ववर्ती छात्रों का एक सम्मेलन हुआ था. उसके बाद यह दूसरा मौका होगा जब इस स्कूल के पढ़ें विद्यार्थी एक साथ एकत्रित होंगे. शताब्दी समारोह में 1950-2019 तक के छात्र इस समारोह में 5 मार्च को शामिल होंगे. शताब्दी समारोह में 1000 रजिस्टर्ड छात्र जुटेंगे.
अतीत के आईने में जैन स्कूल
जैन स्कूल की स्थापना 1920 में हुई थी. जैन स्कूल न सिर्फ भोजपुर बल्कि बिहार में चर्चित स्कूलों में शुमार था. अपने सख्त अनुशासन और अच्छे रिजल्ट के कारण इस स्कूल में हर अभिभावक अपने बच्चे का नामांकन कराना चाहता था. स्कूल का गोल्डन पीरियड 1988-94 रहा है. छात्रों की उपस्थिति यहां 80% तक रहती थी. 1920 से लेकर अब तक इस स्कूल ने 12 प्रधानाध्यापको ने कमान संभाली. स्कूल की संरचना की बात करें तो बहुत बड़ा नही है. मात्र 12 क्लास रूम रूम 4 अन्य कमरे 7शौचालय और 01 खेल के मैदान सहित 11 कंप्यूटर है. 4000 से अधिक पुस्तकालय में पुस्तक है. वर्तमान में प्रभारी प्राचार्य कमलेश कुमार जैन हैं. उन्होंने कहा कि शिक्षा जगत में नित नए प्रयोग शिक्षा स्तर में में काफी गिरावट का कारण है. साथ ही उन्होंने सरकारी स्कूल की छवि बिगाड़ने में प्रचार तंत्र का बहुत बड़ा हाथ बताया. स्कूलों की हालत सुधारने के लिए उन्होंने सभी लोगों से अपील की.
सन्ध्या कालीन सत्र का उद्घाटन आदिनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष,प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष आलोक चन्द्र जैन, वरिष्ठ रंगकर्मी चन्द्रभूषण पांडेय और आरा रंगमंच के महासचिव अशोक मानव ने दीप प्रज्ज्वलित कर संयुक्त रूप से किया. उद्धघाटन के बाद कोलकाता की श्रुति चन्द्रा ने सत्यम शिवम सुंदरम नृत्य की प्रस्तुति की वही आरा रंगमंच के कलाकारों ने “शंकरा रे शंकरा” पर शानदार समूह नृत्य से दर्शकों का मन मोह लिया. इस मौके पर एक बच्चों का समूह नृत्य भी पेश किया गया जिसमें कई गानों का मिश्रित स्वर था. इन गानो में विवादित खलनायक फ़िल्म के गाने को सुन दर्शकों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की. कई वरिष्ठ लोग तो उस प्रस्तुति के बीच से ही चले गए. यहाँ तक मन संचालित कर रहे युवा लेखक व रंगकर्मी नीरज नीर ने मंच से ही उसकी आलोचना कर डाली.
सन्ध्या सत्र में सांस्कृतिक कार्यक्रम का उद्घाटन करते अतिथि गण
पहले दिन ही लगभग 3.30घटे विलंब से प्रारम्भ हुई सन्ध्या काल की सांस्कृतिक संध्या लगभग 8:30 बजे से प्रारम्भ हुई. कुछेक नृत्य प्रस्तुतियों के बाद तीन नाटकों की प्रस्तुति हुई. पहला नाटक मिट्टी का माधव आरा रंगमंच ने अनिल सिंह के निर्देशन में किया.
नाटक ‘मिट्टी का माधव’ आरा रंगमंच की प्रस्तुति
यह नाटक प्रतियोगिता से बाहर था क्योंकि यह आयोजक दल की प्रस्तुति थी. नाटक में माधव एक मजदूर वर्ग को इंगित करता बड़े लोगों की सेवा में लगे रहे उनके जान तक चले जाने की कहानी थी. माधव अपने जीवन के अति महत्वपूर्ण और निजी क्षणों को भी अपने मालिक की सेवा में सुपुर्द कर देता है लेकिन इसके बदले न तो उसे मजदूरी और न ही उसे छुट्टी ही मिल पाती है. नाटक में माधव की भूमिका में अम्बुज आकाश,ठाकुर की भूमिका में बम ओझा और सूत्रधार की भूमिका में पल्लवी प्रियदर्शनी और बसन्ती के रोल में आकांक्षा प्रियदर्शनी ने ठोस अभिनय किया.
वही दूसरा नाटक अलंकार थियेटर ग्रुप, चंडीगढ़ ने नाटक ‘पहला अध्यापक’ की प्रस्तुति दूसरे नम्बर पर की. निर्देशक चक्रेश कुमार द्वारा निर्देशित इस नाटक का लेखन मंजू यादव का था जिसका रूपान्तरण – चनीज एतमालीय का था. प्रकृति के नियम “जो पढ़ेगा, लड़ेगा वही आगे बढेगा, लड़ने के बिना कुछ नही मिलता” को चरितार्थ करते इस नाटक की कहानी यूपी के एक ऐसे गाँव की थी जहाँ स्कूल नही था.
फर्स्ट मास्टर(पहला अध्यापक) के दृश्य, चंडीगढ़ के अलंकार नाट्य ग्रुप की प्रस्तुति
संगीता नाम की एक लड़की अपनी चाची के अत्याचारों से सहमी अपनी नींद भी ठीक से पूरी नही कर पाती है. गाँव का ही एक युवक अपने पिता की हत्या के बाद पढ़ लिखकर गाँव पहुँचता है और शुरू होती है उसके वहाँ स्कूल खोलने का संघर्ष. गाँव के लोग तैयार नही होते हैं लेकिन कानून के डर से गाँव वाले स्कूल खोल अपने बच्चे को स्कूल भेजते हैं. संगीता को भी उसका चाचा स्कूल जाने की अनुमति दे देता है. नदी, नालों को पार कर स्कूल जाने के दौरान शिक्षक बच्चों को अपनी पीठ पर बिठा उसे पर कराता है और यही दृश्य गाँव मे चर्चा का विषय बन जाता है. शिक्षक रामेश्वर को गाँव वाले पीटते हैं और संगीता को भी. लेकिन रामेश्वर संगीता को मौत के मुँह से खींच शहर उच्च शिक्षा को भेजता है. संगीता को मन ही मन उस शिक्षक से प्यार हो जाता है लेकिन वह उसे शहर भेजता है. काफी सालो बाद संगीता भी अपने गांव लौटती है एक स्कूल खोल महिलाओं को शिक्षित होने के उद्देश्य से. पुनः जब दोनों मिलते हैं तो संगीता शिक्षक को बोलती है कि उसने कई बार चिट्ठियाँ लिखी पर उसका जवाब कभी क्यो नही मिला तो शिक्षक जवाब देता है कि शिक्षक और छात्र का प्यार उसके भविष्य सँवारने के लिए होता है. शिक्षा का संदेश देता और रिश्तों की बानगी को दर्शकों के मन मे पिरोने में नाटक के पात्रों का शानदार अभिनय रहा.
फर्स्ट मास्टर नाटक के कई दृश्य
मेलोड्रामेटिक फॉर्म में नाटक ने निर्देशक के कल्पनाशीलता को भी बयान किया. प्रॉप्स का उपयोग, बैकग्राउंड म्यूजिक, लाईट और ग्रुप वर्क कमाल का था. कुल मिलाकर कहा जाए तो पहले दिन ही प्रतियोगिता की शानदार पहली प्रस्तुति. वैसे तो कोई कलाकार कम नही था लेकिन दर्शकों को संगीता और चाची की अदा ने कायल कर दिया.
वाराणसी की प्रस्तुति ‘मोह’
तीसरी और आखिरी प्रस्तुति सेतु सांस्कृतिक केंद्र वाराणसी की नाटक मोह रही. लेखक मन्नू भंडारी के इस नाटक नाट्य रूपांतरण प्रतिमा सिन्हा का था जिसका निर्देशक सलीम राजा ने किया था.
आरा से ओ पी पांडेय व सावन कुमार की रिपोर्ट