मदुरई : रंगों और कूचियों से खेलने वाली लड़की
आरा, 21अक्टूबर. “हर बच्चा एक कलाकार है.” स्पेन के महान चित्रकार पाब्लो पिकासो की इस पंक्ति को चरितार्थ कर रही है भोजपुरी चित्रकला की रेखाएँ खींचने की कला सीखने, रंगों और कूचियों से खेलने वाली लड़की. नाम है मदुरई और जन्म वर्ष 2007 है. मदुरई को भोजपुरी बाल नाटक के लिए ‘आखर’ द्वारा सम्मान प्राप्त है साथ ही साथ सर्जना न्यास ने इन्हें ‘सृजन सम्मान’ से सम्मानित किया है.
अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ी मदुरई वर्तमान में संभावना विद्यालय, आरा की सातवीं कक्षा की छात्रा हैं. वह अपने विद्यालय के सांस्कृतिक-कलात्मक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेती रही हैं. मदुरई को चित्रकला से विशेष लगाव है. भोजपुरी चित्रकला, जूट शिल्प आदि पर आयोजित कार्यशाला मे प्रशिक्षण प्राप्त किया है. उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान, पटना द्वारा आयोजित कार्यशाला में प्रशिक्षण प्राप्त मदुरई आड़ी-तिरछी रेखाओं और अलग-अलग रंगों की दुनिया में गोते लगती हुई अपनी कलाकृतियों में एक अलग संसार रचती हैं.
मदुरई केवल चित्रकारी नहीं करती वह कलाकारी भी जानती हैं. आखर, भोजपुरी गीत-संगीत, कला, साहित्य और संस्कृति के लिए काम करने वाली एक गैर-सरकारी संस्था, द्वारा 03 दिसंबर 2017 के पंजवार, सिवान में आयोजित भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन-8 में एक बाल नाटक का मंचन किया गया था. बाल नाटक का नाम था ‘चिरईं दाना’. नाटक का विषय वस्तु था खूँटे में फँसे दाल को निकलवाने (अपना हक पाने) के लिए गौरेया, राजा से लेकर नदी, बढ़ई, रानी तक को उचित तर्क देती है और अपनी बुद्धिमता से इसमें सफल भी होती है. नाटक में संभावना आवासीय विद्यालय, आरा के बच्चों ने अपनी कलाकारी का जादू दिखाया था. नाटक में गौरैया नामक चिड़िया की मुख्य भूमिका में यही मदुरई थी.
बातचीत के दौरान मदुरई से पढ़ाई-लिखाई के बारे में जानना चाहा. मदुरई ने बताया कि “वैसे तो सभी विषय अच्छे लगते हैं, पर अलग-अलग सूत्र होने के कारण गणित मेरा प्रिय विषय है.” वह कहती हैं कि वह अपनी कक्षा में ब्लैकबोर्ड पर विषय से संबंधित डायग्राम भी बनाती हैं. सह-शिक्षा वाले इस आवासीय विद्यालय में वह अपने सहपाठियों के साथ मिलकर घर की आंतरिक साज-सज्जा (इनर डेकोरेशन) पर भी चर्चा करती है. मदुरई आगे बताती हैं “मेरे कुछ सहपाठी हैं जो भोजपुरी क्षेत्र से नहीं हैं. भोजपुरी कला के बारे में मैं जो जानती हूँ उसके बारे में अपने उन साथियों को जानकारी देती हूँ. मुझे कला और शिल्प (आर्ट एवं क्राफ्ट) में विशेष रूचि है. मैं घर पर कागज का झूमर, जूट से पेड़-पौधे, चिड़िया का घोसला, मानचित्र (ग्लोब) आदि बनाती हूँ. अभी तो इतना ही सीख पाई हूँ. हमारा कोई समूह नहीं है पर मुझे अच्छा लगता है तो विशेष रूचि लेती हूँ.”
यह पूछने पर कि उन्हें ये सब करने की प्रेरणा कहाँ से मिलती है. मदुरई बेहिचक संजीव सिन्हा का नाम लेती हैं. वह बताती हैं कि वह उनके चाचा हैं और वही उन्हें कला का ककहरा सीखा रहे हैं.
मदुरई प्रकृति से, पेड़-पौधों, चिड़ियों आदि से प्रभावित हैं. वह कहती हैं कि “मैं चिड़िया को देखकर, उसकी गतिविधियों के बारे में सोचकर, उसकी फोटो लेकर अपनी कलाकृति बनाती हूँ. बाजार से (सजावट का सामान) खरीदना अलग है, पर अपने से बनाने की अनुभूति कुछ अलग होती है. भोजपुरी कला के भी चित्र उकेरती हूँ, अभी तो सीख ही रही हूँ. कोई सीखना चाहे तो उसे ध्यान देना जरूरी है, रूचि लेना जरूरी है.”
आरा से चंद्रभूषण पाण्डेय की रिपोर्ट