गंगा बचाओ अभियान के सदस्यों ने की बैठक
आरा. गंगा बचाओ अभियान की बैठक एमपी बाग स्थित वरिष्ठ कवि व लेखक पवन श्रीवास्तव के आवास पर हुई. बैठक में भोजपुर व बक्सर जिले के सदस्य शामिल हुए. कार्यक्रम का संचालन गंगा जगाओ अभियान के संयोजक गंगायात्री कवि निलय उपाध्याय तथा अध्यक्षता पवन श्रीवास्तव ने की. बैठक से पूर्व पीरो के प्रथम विधायक राम इकबाल वारसी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए नमन किया गया. बैठक में निर्णय लिया गया कि गंगा बचाओ अभियान के तहत शुरू हुए फरक्का बराज तोड़ो अभियान के अंतर्गत अब स्थल पर कार्य किये जायेंगे. बैठक में यह तय किया गया कि फरक्का तोड़ो अभियान चार चरणों मे चलाया जाएगा. जिसमें पहले चरण के तहत जिले के विभिन्न प्रखंडों में अभियान के सदस्य दुख की खोज करेंगे. गांवों में जाकर सदस्य लोगों से उनके दुख जानेंगे.
बैठक की अध्यक्षता करते हुए पवन श्रीवास्तव ने कहा कि लोगों का दुख जानने के लिए अब तक किसी भी सरकार या संस्था ने पहल नहीं की है. यह कार्य फरक्का तोड़ो अभियान के तहत किया जाना है. हम सबसे पहले लोगों से उनका दुख जानने के बाद उसे सूचीबद्ध करेंगे. फिर कोर कमिटी उसमे से निर्धारण करेगी कि कौन सी परेशानियां समान हैं. जो सबसे अधिक कष्टदायी हैं, उसके बाद उन दुखों के कारण तलाशे जाएंगे. उन दुखों के निदान का भी हर सम्भव प्रयास किये जायेंगे. लोगों के बीच मानव केंद्रित विकास व प्रकृति केंद्रित विकास के अंतर व इसके फायदे-नुकसान के बारे में बताया जाएगा.
उन्होंने कहा कि आज दुनियां के सामने यह एक बड़ा सवाल उभरकर आया है कि प्रकृति को अब तक विकास के केंद्र में नहीं रखने के कारण मानव सभ्यता पर संकट आ गया है. पीने के पानी, सांस के लिए हवा और फसल उपजाने के लिए हमारी मिट्टी की सेहत खराब हो रही है. प्रकृति ने हर ओर से मानव जाति पर हमला कर दिया है. जिससे हमारे अस्तित्व को चुनौती मिलने लगी है. हालांकि उन्होंने दुख जताते हुए कहा कि आज भी आम भारतीय के जेहन में ये सवाल नहीं हैं. जबकि विश्व के अन्य देशों के बौद्धिक वर्ग में इस बात को लेकर चिंतन होने लगे हैं.
यह सवाल तो विदेशों में आ गया है, लेकिन, इसका जवाब भारत मे है. भारत के लोग प्रकृति केंद्रित विकास के सहारे हजारों वर्षों तक जीवित रहे हैं. हम तुलसी का पत्ता तोड़ने से पूर्व क्षमा मांगने की संस्कृति को जीते रहे हैं. अगर जीवन बचाना है तो मानव को पुनः उसी धारा में जाने की जरूरत है.
कवि निलय उपाध्याय ने कहा कि प्रकृति के साथ अन्याय करते हुए आज आदमी वहां पहुंच गया है,जहां से कोई रास्ता नहीं बचा है. हमारी जीवन दायिनी गंगा नदी में यमुना, रामगंगा, काली नदी आदि के गाद भर गये हैं. गंगा की विभिन्न सहायक नदियों में गिरने वाले कल-कारखाने व फैक्ट्रियों के नाले से निकले अपशिष्ट पदार्थों व केमिकल से नदी बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है,जिससे गंगा का जल खराब हो चुका है. इस कारण हमारे इलाके का भूगर्भीय जलस्तर खराब हो चुका है. बिहार, यूपी के लोग आर्सेनिक युक्त पानी पीने को मजबूर हैं. वे आर्सेनिक रूपी जहर पीकर बेमौत मार रहे हैं. कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों ने 40 प्रतिशत लोगों को अपने आगोश में ले लिया है. 70 प्रतिशत लोगों को खुजली, अपरस व एग्जिमा जैसे चर्म रोग जकड़े हुए हैं. हम अगर आज नहीं चेते तो आने वाले दिनों में यह और भी घातक साबित होगा.
अभियान के सक्रिय सदस्य रिटायर्ड मिलिट्री पर्सन नर्वदेश्वर शुक्ला ने कहा कि हमारे खेतों की उर्वरा शक्ति खत्म हो गयी है. फसलों में बिना उर्वरक के उपज नहीं होती. यह उर्वरक काफी जहरीला है. इसके प्रति सरकार भले ही जागरूकता अभियान चला रही है. लेकिन, आज भी किसान इससे होने वाले खतरे से अनभिज्ञ बने हुए हैं. जो समाज के लिए खतरनाक है. उन्होंने गांवों में जाकर हरित खेती के लिए जागरूकता फैलाने की बात कही. बैठक में उपस्थित सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अरुण भोले ने कहा कि वे पंचायत से लेकर गांव स्तर तक लोगों से इस अभियान में बढ़चढ़ कर प्रतिभागिता करने को लेकर सक्रिय भागीदारी निभाएंगे. साथ ही अभियान को प्रखंड स्तर पर बैठक व कार्यशाला के माध्यम से पहुंचाने में अपना योगदान देंगे. बैठक में वरिष्ठ रंगकर्मी अरुण श्रीवास्तव, अजय शाह, मणि श्रीवास्तव, मनोज कुमार, पत्रकार मंगलेश मुफलिस, चित्रकार कमलेश कुंदन समेत अन्य लोग मौजूद रहे.
आरा से ओ पी पांडेय की रिपोर्ट