भारतीय संगीत में किसका है अमिट योगदान?

By om prakash pandey Jul 11, 2019

‘बिहार का अमिट योगदान रहा है भारतीय संगीत में’ : भिखारी ठाकुर पुण्यतिथि स्पेशल

पटना. लोककलाकार और भोजपुरी रंगमंच के सशक्त हस्ताक्षर भिखारी ठाकुर की पुण्यतिथि के अवसर पर एक बेहद ख़ास आयोजन ‘बिहारनामा’ पटना के बिहार म्यूजियम में हुआ, जिसके सह-आयोजक ‘आखर’ और ‘लोकराग’ थे. कार्यक्रम की शुरुआत में अतिथियों का स्वागत विनोद अनुपम ने किया.




‘भिखारी की रचनाओं में स्त्रियाँ’ पर हुई चर्चा

आयोजन के पहले भाग में एक बतकही हुई जिसका विषय था– ‘भिखारी की रचनाओं में स्त्रियाँ’ और इस पर चर्चा कर रहे थे चर्चित भोजपुरी साहित्यकार तैयब हुसैन पीड़ित और कथाकार हृषिकेश सुलभ.

हृषिकेश सुलभ ने कहा कि भिखारी ठाकुर ने अपनी रचनाओं में स्त्रियों को जो आवाज़ दी है वो सिर्फ तात्कालिक नहीं, बल्कि आज भी उतनी ही प्रासंगिक और आगे भी रहेगी, शायद इसीलिए ‘गबरघिचोर’ का मंचन अब ‘बिदेसिया’ से ज्यादा हो रहा है.

तैयब हुसैन पीड़ित ने कहा कि अक्सर हम भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व का समग्र मूल्यांकन नहीं कर पाते. आगे उन्होंने कहा कि नाई समाज में जनम होने की वजह से भिखारी ठाकुर को स्त्रियों की व्यक्तिगत समस्याओं का पता लगाने की सहूलियत थी और इसी की वजह से शायद उनके नाटकों में स्त्रियों का दर्द झलकता है. बतकही के सूत्रधार ‘आखर’ के संजय सिंह थे. दोनों रचनाकारों ने दर्शकों के सवालों का जवाब भी दिया.

‘गायन-वादन-नृत्य की परम्परा की जन्मस्थली है बिहार’ : डॉ झा

‘बिहारनामा’ के अगले भाग में एक व्याख्यान का आयोजन हुआ जिसका विषय था– ‘बिहार की संगीत परंपरा और भारतीय संगीत में उसका योगदान’ और इस पर व्याख्यान डे रहे थे डॉ प्रवीण झा. डॉ झा मूल रूप से बिहारी हैं और अभी नॉर्वे में डॉक्टर हैं. इनकी किताब ‘कुली लाइन्स आजकल चर्चा में है.

डॉ झा ने कहा कि भारतीय संगीत का इतिहास लिखते वक़्त बिहार के योगदान को नज़रअंदाज किया गया है जबकि बिहार के जिक्र के बिना ये इतिहास अधुरा है. उन्होंने कई उदाहरण देते हुए सिद्ध किया कि ध्रुपद का सम्बन्ध बेतिया और दरभंगा से, ठुमरी का गया से और ख्याल का पटना सिटी से रहा है. कई चर्चित घरानों का उद्गम बिहार से ही हुआ. पंडित छन्नूलाल मिश्र, पंडित रविशंकर, शोभना नारायण ने अपनी संगीत यात्रा की शुरुआत यहीं से की. पर बिहार को जिस तरह से दरकिनार किया गया उससे यहाँ के संगीतज्ञों में निराशा है. अभी भी उम्मीद है कि अगर कोई अच्छा संगीत महाविद्यालय बिहार में खुले तो उस गौरव को हासिल किया जा सकता है.

डॉ झा की अगली पुस्तक बिहार के संगीत पर ही आने वाली है

‘बारहमासा’ और ‘कजरी’ पर झूम उठे श्रोता

कार्यक्रम के अंतिम भाग में ‘पुरबियातान’ फेम लोकगायिका चंदन तिवारी ने बिहार की सभी भाषाओँ में लोकगीतों को प्रस्तुत किया. शुरुआत उन्होंने भिखारी ठाकुर के ‘बिदेसिया’ और ‘बारहमासा’ से की जिससे दर्शक भावविभोर हो गये. रसूल मियां के देशभक्ति गीतों और विंध्यवासिनी देवी को समर्पित गीत ने तो समां ही बाँध दिया. ‘निमिया के डाढ’ बेटी विदाई गीत और स्नेहलता के मैथिली गीत से उपस्थित दर्शक भावुक हो गये.

कार्यक्रम का सञ्चालन निराला ने किया. अंत में पूर्व सांसद शिवानन्द तिवारी, संस्कृतिकर्मी दिनेश मिश्र, और अधिकारी मधुबाला ने सभी को चुनरी,’आखर’ स्मृतिचिन्ह और स्वाभिमान कैलेंडर से सम्मानित किया.

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों के अलावा दुबई, सऊदी अरब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड आदि जगहों से आये बिहारी सुधी दर्शक उपस्थित थे. आखर के वरिष्ठ सदस्य नबीन कुमार, देवेन्द्र तिवारी, आनंद मोहन, सुधीर मिश्र, मुन्ना पाण्डेय, राजीव कुमार सिंह आदि का योगदान सराहनीय रहा.

पटना से रवि प्रकाश सूरज की रिपोर्ट

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