पटना / नोएडा (ब्यूरो रिपोर्ट) | उनके भी आसमान में उड़ने के सपने थे. वे अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनकर दुनिया को देखना चाहते थे. लेकिन नियति और ही मंजूर था. 26 मार्च को उनका 16 साल की उम्र में ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक बीमारी से निधन हो गया.
हम बात कर रहे हैं नोएडा सेक्टर-44 स्थित एमिटी इंटरनेशनल स्कूल में दसवीं में पढ़ने वाले छात्र 16 वर्षीय विनायक श्रीधर का. उन्होंने हाल ही में हुए सीबीएसई की दसवीं की परीक्षा में हिस्सा लिया था. तीन विषयों के पेपर भी दिए थे. चौथे पेपर में बैठने से पहले 26 मार्च 2019 को उनका देहांत हो गया. गत सोमवार को सीबीएससी द्वारा जारी किये गए परिणामों में उनको अंग्रेजी में 100, विज्ञान में 96 और संस्कृत में 97 अंक मिले. बाकि, कंप्यूटर साइंस और सोशल स्टडीज की परीक्षा नहीं दे पाए थे. विनायक वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिग को अपना आदर्श मानते थे.
बताया जाता है कि विनायक जब दो वर्ष के थे, तब से उनको ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) बीमारी की समस्या थी. दुनिया भर में करीब 3500 बच्चों में से एक बच्चा इस रोग से ग्रस्त होता है. इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है. विनायक के पिता श्रीधर बताते हैं कि इस बीमारी में बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता जाता है, यह बीमारी बढ़ने लगती है. पीड़ित के शरीर में कुछ ऐसे जीन पनपते हैं जिनकी वजह से वह मांसपेशियों को स्वस्थ रखने वाला प्रोटीन नहीं बना पाता है. विनायक व्हील चेयर के जरिये ही अपना सब करते थे. विनायक के हाथ भी बहुत धीरे-धीरे काम करते थे. इन सब से जूझते हुए भी विनायक ने सामान्य बच्चोें के वर्ग में दसवीं की परीक्षा के लिए काफी तैयारी की थी. उन्होंने परीक्षा में सामान्य श्रेणी के चिल्ड्रन विद स्पेशल नीड (सीडब्ल्यूएसएन) वर्ग में हिस्सा भी लिया था. यद्दपि लिखने में उनके हाथ की गति काफी धीमी थी लेकिन दिमाग बहुत तेज था. संस्कृत विनायक का पसंदीदा विषय था. दसवीं की परीक्षा में संस्कृत के पेपर्स उन्होंने खुद अपने हाथों से लिखा, जबकि, अंग्रेजी और विज्ञान के लिए सहायक का सहारा लिया था. श्रीधर बताते हैं कि विनायक को पढ़ाई का बहुत शौक था. बड़ा होकर विनायक अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनना चाहते थे.
विनायक के पिता श्रीधर ने बताया कि विनायक काफी धार्मिक प्रवृति के भी थे. विनायक दसवीं की परीक्षा खत्म होने के बाद कन्याकुमारी स्थित रामेश्वरम मंदिर दर्शन को जाना चाहते थे. वह अक्सर कहते थे जब स्टीफन हॉकिग दिव्यांग होकर ऑक्सफोर्ड जा सकते हैं और विज्ञान की दुनिया में इतिहास रच सकते हैं तो वह भी एक दिन अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनेंगे. विनायक आश्वस्त थे कि परिणाम आने पर वह टॉपरों में अपनी जगह बनाएंगे. श्रीधर ने बताया कि वह विनायक की इच्छा को पूरा करने के लिए हाईस्कूल के परिणाम के दिन रामेश्वरम गए थे.
बता दें कि विनायक का परिवार नोएडा सेक्टर-45 में रहता है. पिता श्रीधर जीएमआर कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर कार्यरत हैं जबकि मां ममता गृहणी हैं. बड़ी बहन वैष्णवी यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया से पीएचडी की पढ़ाई कर रही हैं.