2 दिन में 50 फ़िल्म ! रचनात्मकता की अग्निपरीक्षा या कलात्मक प्रयोग की ?

कार्यशाला से उपजेगा मैकाले शिक्षा का विरोध




आरा, 17 जनवरी | गंगा जगाओ अभियान और जॉ पाल स्कूल आरा के तत्वावधान में कविता लेखन व फ़िल्म मेकिंग की दो दिवसीय कार्यशाला 18-19 जनवरी को धनुपुरा स्थित स्कूल में आयोजित की जाएगी. इसकी जानकारी प्रख्यात कवि व लेखक निलय उपाध्याय ने दी. बताते चलें कि वे विद्यालय-विद्यालय घूम रहे हैं जिनकी सारी चिन्ताऎ सिमट कर कविता-फ़िल्म की सोलह साल तक के बच्चों की कार्यशाला पर केन्द्रित हो गई है. यह कार्यशाला आगामी १८-१९ जनवरी को आरा के जॉ पाल,धनुपूरा स्कूल में होगी. इसमें पचास बच्चे ,छह सहयोगी( दो फ़िल्म निर्माण, दो एडिटिंग तथा दो म्यूजिक डायरेक्टर ) भाग लेंगे. इस कार्यशाला के माध्यम से बच्चों द्वारा तैयार की गई सामग्रियों को ४८ घंटों में ५० फ़िल्में और ५० कविताएं विद्यालय के प्राचार्य को सौपने की होगी. उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला में प्रशिक्षक के रूप में वे खुद कविता लेखन व फ़िल्म स्क्रिप्ट लेखन का प्रशिक्षण, वरिष्ठ रंगकर्मी अजय शाह व ओ पी पांडेय फ़िल्म मेकिंग का प्रशिक्षण, फ़िल्म एडिटिंग का प्रशिक्षण अमन बाबा, कैमरा मैन के रूप में कन्हैया व रविकांत,वही वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र सिंह फ़िल्म पत्रकारिता के प्रशिक्षक के रूप में भाग लेंगे.

जॉ पॉल स्कूल के प्राचार्य शम्भूनाथ मिश्रा ने बताया कि इस कार्यशाला में 50 बच्चे भाग लेंगे.

कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य बच्चों में क्रिएटिविटी पैदा करना व मैकाले की शिक्षा पद्धति का विरोध करना है. इस कार्यशाला से बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरणा दी जाएगी. आयोजकों का मानना है कि आत्मनिर्भरता ही स्वपन को जन्म देती है. कवि निलय उपाध्याय बताते हैं कि पीलिया में रोग, लीवर में होता लेकिन असर आंख में दिखता है. इसी तरह वे समझ गये हैं कि गंगा देश के संकट को देखने की आंख है. लीवर यह शिक्षा पद्धति है जो सिर्फ़ गुलाम बनाती है. जहां जीवन आत्मनिर्भर था वहां गुलाम शिक्षा पद्धति ने हमारी प्रतिभाओं को हमसे छीन कर अपनी चाकरी में लगा दिया. गुलामी ने उन्हे ऎसा बना दिया कि वे सह सकते है लेकिन कह नहीं सकते. हमारा जीवन सोने की चिड़िया का जीवन था.
उस जीवन की ओर लौटने की पहली शर्त तमाम आधुनिकताओ के साथ हमारी आत्मनिर्भर ग्राम व्यवस्था बनाने की होगी. तभी हम कंपनियों की गुलामी नहीं करेंगे.
संकट दोहरा है. एक तो बिहार में हमारे पंचतत्वों में तीन तत्व जल,मिट्टी और वायु खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो गये है. प्रकृति के चक्र में टूटन आई है उसकी रिपेयरिंग जरूरी है ताकि प्रलय और बीमारियों के आक्रमण से बच सके. यह काम सरकार और लोगों के सम्मिलित प्रयास से होगा. आज बाजार ने वहां खडा कर दिया है जहां से यह संभव नहीं है. इस कार्यशाला के जरिये 1 हजार बच्चों को प्रशिक्षित करना है. आने वाले समय में कार्यशाला में आये ये बच्चे जब सयाने होंगे तब तक पर्यावरण का संकट अलग जगह खडा हो चुका होगा. निलय उपाध्याय के अनुसार एक हजार बच्चों के बीच, दस-बीस की आत्मा में उनका यह दुख समा जाय तो उनका प्रयास सार्थक हो जाएगा. फ़िलहाल उनकी चिन्ता है कि इतने कम समय में वगैर मैकाले की चर्चा किए इस कार्यशाला का टारगेट पूरा करे आगामी कार्यशालाओ के लिए एक फ़ार्म की तलाश की जा सके.

आरा से अपूर्वा व सत्य प्रकाश सिंह की रिपोर्ट

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