अभिजीत मुहूर्त में करें कलश स्थापना
दिन के 11.36 से 12.24 बजे के बीच है उत्तम समय
प्रात:काल कन्या लग्न मुहूर्त 05.44 से 06.53 तक है
इस मुहूर्त में भी कर सकते हैं कलश स्थापना
आज से महालया शुरू होने से दुर्गा पूजा की तैयारियां भी शुरू हो गई है . कलश स्थापना एक अक्टूबर को की जायेगी. महालया के दिन भी श्रद्धालु घरों में चंडी पाठ भी करते हैं. इसी दिन से लोग दुर्गा पूजा की भी तैयारी शुरू कर देते हैं. इस बार शारदीय नवरात्र 10 दिन का हो रहा है तथा 11वें दिन विजयादशमी होगी.नवरात्र एक अक्तूबर से शुरू हो रहा है. एक अक्तूबर को प्रात: 04.23 बजे से प्रतिपदा लग रहा है, जो रविवार को प्रात: 05.53 बजे तक रहेगा. इस दिन अभिजीत मुहूर्त दिन के 11.36 से 12.24 बजे के बीच है. कलश स्थापना के लिए यह बेहतर समय माना गया है. प्रात:काल कन्या लग्न मुहूर्त 05.44 से 06.53 तक है. यह समय भी कलश स्थापना के लिए अच्छा माना जाता है. मां की आराधना के लिए प्रात:काल का समय सबसे अच्छा माना गया है.
देवी दुर्गा को आदिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है. इनके नौ अन्य रूप है जिनकी पूजा नवरात्रों में की जाती है. माना जाता है कि राक्षसों का संहार करने के लिए देवी पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया था.माँ दुर्गा का आगमन घोड़ा पर होगा. इसका फल नृपनाशक यानि देश के शीर्ष नेतृत्व में परिवर्तन या संकट का योग दिखाता है. युद्ध तथा लोगों के कष्ट की संभावना होती है. वहीं मिथिला पंचांग के अनुसार, मां का आगमन घोड़ा पर हो रहा है अौर गमन मुर्गा पर हो रहा है. हालांकि मां की आराधना पूरे दस दिनों तक होगी, जो भक्तों को शुभ फल प्रदान करेगी.
कलश स्थापना का विशेष महत्व
मां की आराधना में कलश स्थापना का विशेष महत्व है. मां की आराधना शुरू करने से पूर्व सबसे पहले कलश में जल, गंगाजल, सर्वोषधि, दूर्वा, कुश, पंच पल्लव, सप्तमृतिका, कसैली, पंचरत्न, द्रव्य डालकर उस पर ढक्कन लगाकर ढक दें. ढक्कन में अक्षत डालकर उस पर नारियल एक कपड़े में लपेटकर रख लें और फिर उसकी पूजा कर लें. फिर इस मंत्र का जाप करें.
त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं कर्तुमिह जलोदभव. सान्नध्यिं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा.
सामग्री- देव मूर्ति के स्नान के लिए तांबे का पात्र, तांबे का लोटा, जल का कलश, दूध, देव मूर्ति को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र व आभूषण, प्रसाद के लिए फल, दूध, मिठाई, पंचामृत( दूध, दही, घी, शहद, शक्कर ), सूखे मेवे, शक्कर, पान, दक्षिणा, गुड़हल के फूल, नारियल, चावल, कुमकुम, दीपक, तेल, रुई, धूपबत्ती, अष्टगंध,
गणेश पूजन
प्रथमपूजनीय गणपति गजानन गणेश हिन्दू धर्म के लोकप्रिय देव हैं. इनका वर्णन समस्त पुराणों में सुखदाता, मंगलकारी और मनोवांछित फल देने वाले देव के रूप में किया गया है. भगवान गणेश को वरदान प्राप्त है की किसी भी शुभ कार्य से पहले उनकी पुजा अनिवार्य है.
कैसे करें सकंल्प
देवी दुर्गा का पूजन शुरू करने से पहले सकंल्प लें. संकल्प करने से पहले हाथों में जल, फूल व चावल लें. सकंल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष, उस वार, तिथि उस जगह और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोलें. अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर छोड़ दें. माता दुर्गा की पूजा सबसे पहले जिस मूर्ति में माता दुर्गा की पूजा की जानी है. उस मूर्ति में माता दुर्गा का आवाहन करें. माता दुर्गा को आसन दें. माता दुर्गा को स्नान कराएं. स्नान पहले जल से फिर पंचामृत से और वापिस जल से स्नान कराएं.माता दुर्गा को वस्त्र अर्पित करें. वस्त्रों के बाद आभूषण पहनाएं. पुष्पमाला पहनाएं. सुगंधित इत्र अर्पित करें, तिलक करें. तिलक के लिए कुमकुम, अष्टगंध का प्रयोग करें. धूप व दीप अर्पित करें.माता दुर्गा की पूजन में दूर्वा को अर्पित नहीं करें, लाल गुड़हल के फूल अर्पित करें. 11 या 21 चावल अर्पित करें. श्रद्धानुसार घी या तेल का दीपक लगाएं. आरती करें. आरती के पश्चात् परिक्रमा करें. नेवैद्य अर्पित करें. माता दुर्गा की आराधना के समय ‘‘ऊँ दुं दुर्गायै नमः” मंत्र का जप करते रहें. माता दुर्गा की पूजन के पूरा होने पर नारियल का भोग जरूर लगाएं।.माता दुर्गा की प्रतिमा के सामने नारियल अर्पित करें. 10-15 मिनिट के बाद नारियल को फोड़े. प्रसाद देवी को अर्पित कर भक्तों में बांटें. अंत में प्रार्थना पूजन में रह गई किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए दुर्गा माता से क्षमा मांगे.
देवी दुर्गा के हैं अनेक नाम
सती, साध्वी, भवप्रीता, भवानी, भवमोचनी, आर्या, दुर्गा, जया, आद्या, त्रिनेत्रा, शूलधारिणी, पिनाकधारिणी, चित्रा, चंद्रघंटा, महातपा, बुद्धि, अहंकारा, चित्तरूपा, चिता, चिति, सर्वमंत्रमयी, सत्ता, सत्यानंदस्वरुपिणी, अनंता, भाविनी, भव्या, अभव्या, सदागति, शाम्भवी, देवमाता, चिंता, रत्नप्रिया, सर्वविद्या, दक्षकन्या, दक्षयज्ञविनाशिनी, अपर्णा, अनेकवर्णा, पाटला, पाटलावती, पट्टाम्बरपरिधाना, कलमंजरीरंजिनी, अमेयविक्रमा, क्रूरा, सुन्दरी, सुरसुन्दरी, वनदुर्गा, मातंगी, मतंगमुनिपूजिता, ब्राह्मी, माहेश्वरी, एंद्री, कौमारी, वैष्णवी, चामुंडा, वाराही, लक्ष्मी, पुरुषाकृति, विमला, उत्कर्षिनी, ज्ञाना, क्रिया, नित्या, बुद्धिदा, बहुला, बहुलप्रिया, सर्ववाहनवाहना, निशुंभशुंभहननी, महिषासुरमर्दिनी, मधुकैटभहंत्री, चंडमुंडविनाशिनी, सर्वसुरविनाशा, सर्वदानवघातिनी, सर्वशास्त्रमयी, सत्या, सर्वास्त्रधारिनी, अनेकशस्त्रहस्ता, अनेकास्त्रधारिनी, कुमारी, एककन्या, कैशोरी, युवती, यति, अप्रौढ़ा, प्रौढ़ा, वृद्धमाता, बलप्रदा, महोदरी, मुक्तकेशी, घोररूपा, महाबला, अग्निज्वाला, रौद्रमुखी, कालरात्रि, तपस्विनी, नारायणी, भद्रकाली, विष्णुमाया, जलोदरी, शिवदुती, कराली, अनंता, परमेश्वरी, कात्यायनी, सावित्री, प्रत्यक्षा, ब्रह्मावादिनी.
देवी दुर्गा की आरती