कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद को उनकी जयंती पर नमन

By om prakash pandey Aug 1, 2018

मशहूर कहानीकार मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर पूरे देश मे जयंती मनायी गयी. गोष्ठि, सभाएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम से लेकर कविता पाठ तक का कार्यक्रम किया गया. लेकिन क्या आप जानते हैं उनकी जिंदगी के कुछ अनछुए पहलुओं को? आइए हम बताते हैं कलम के एक बुलंद आवाज के शख्स मुंशी प्रेमचंद के बारे में जिनकी रचनायें पढ़ने के बाद उनके रचित चरित्र पाठक की आंखों के सामने दृश्य बनकर दौड़ने लगते हैं.

धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ नवाब राय उर्फ मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गाँव में हुआ था. उनका पहला विवाह पंद्रह साल की उम्र में हुआ, 1906 में उन्होनें अपना दूसरा विवाह बाल-विधवा शिवरानी देवी से किया. उनकी रचना सोजे-वतन (राष्ट्र का विलाप) पर पाबंदी लगी तो वे धनपत राय नाम छोड़कर प्रेमचंद नाम से लिखने लगे. इस दौरान उन्होनें मर्यादा , माधुरी , हंस , जागरण आदि पत्रिकाओं का सम्पादन किया और मजदूर फिल्म की कथा-पटकथा भी लिखी.




उन्होनें तीन सौ कहानियां, 15 उपन्यास और कई लेख , नाटक आदि लिखे और विदेशी कहानियों/नाटकों का अनुवाद कार्य भी किया. गोदान उनकी कालजयी रचना है. उन्होंनें हिंदी और उर्दू में लिखा.

प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों में – ‘पंच परमेश्वर’, ‘गुल्ली डंडा’, ‘दो बैलों की कथा’, ‘ईदगाह’, ‘बड़े भाई साहब’, ‘पूस की रात’, ‘कफन’, ‘ठाकुर का कुआँ’, ‘सद्गति’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘तावान’, ‘विध्वंस’, ‘दूध का दाम’, ‘मंत्र’ आदि उल्लेखनीय हैं.

08 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया. मरणोपरांत उनकी कहानियाँ मानसरोवर नाम से 8 खंडों में प्रकाशित हुई हैं. सत्यजित राय, के सुब्रमण्यम, मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानियों पर फिल्में बनाईं, उनके उपन्यास पर बना टीवी धारावाहिक निर्मला भी बहुत लोकप्रिय हुआ.

उनके बेटे अमृत राय ने “कलम का सिपाही” नाम से पिता की जीवनी लिखी है

जयंती पर कलम के सिपाही को नमन एवं श्रद्धांजलि

पटना नाउ ब्यूरो की रिपोर्ट

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