जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक 4 अगस्त को होने वाली है. इसे लेकर बिहार इंटस्ट्रीज एसोसिएशन ने अपनी कुछ महत्वपूर्ण मांगें काउंसिल के सामने रखी हैं. बीआईए के सचिव अनिल कुमार सिन्हा ने बताया कि जीएसटी काउंसिल के समक्ष ज्ञापन सौंपा गया है.
प्रमुख मांगें-
(1) विलम्ब -शुल्क में छूट :- एसोसिएशन का मानना है कि जीएसटी कर व्यवस्था देश में सबों के लिए एक नई कर व्यवस्था है। जिसके प्रावधानों तथा प्रक्रिया से अभी तक बड़ी संख्या में करदाता वाकिफ नहीं है जिसके कारण वे सही समय पर रिटर्न आदि दाखील नहीं कर पा रहे हैं. कानून के प्रावधान के अनुसार उनपर विलम्ब -शुल्क आरोपित किया गया है. एसोसिएशन ने जीएसटी काउंसिल से यह अनुरोध किया है कि जून 2018 तक भरे जाने वाले त्रैमासिक टैक्स तथा रिटर्न टैक्स यदि नहीं जमा किया है तो उसपर लगाये गये विलम्ब शुल्क को एक बार माफ किया जाय.
(2) कर भुगतान तथा विलम्ब के कारण लगने वाला सूद- वर्तमान जीएसटी कानून के प्रावधान के अंतर्गत यदि कोई टैक्स का भुगतान करता है लेकिन उस टैक्स का मिनहा अपने टैक्स देनदारी से नहीं करता तो उसको विलम्ब के रूप में देखा जाता है तथा उसपर सूद आरोपित किया जाता है. जबकि टैक्स देनदारी से होने वाली मिनहा की गणना भरे जाने वाले रिटर्न के
उपरान्त ही हो सकती है. ऐसी परिस्थिति में टैक्स जमा करने वाले पर विलम्ब के रूप में सूद की मांग उचित नहीं है। एसोसिएशन का मानना है कि सूद की गणना का आधार जिस दिन पंजीकृत करदाता ने टैक्स का भुगतान किया हो वह
होना चाहिए न कि जिस तिथि को टैक्स का मिलान कर मिनहा किया जाता है.
(3) रिटर्न :- जीएसटी काउंसिल की दिनांक 21-ं7-ं2018 को हुई बैठक में काउंसिल ने यह निर्णय लिया कि वैसे सभी व्यवसाय करने वाले जिनका टर्न ओवर 5 करोड़ रुपया तक है उनके लिए यह विकल्प दिया जाय कि वे चाहे तो त्रैमासिक आधार पर रिटर्न दाखिल कर सकते हैं. एसोसिएशन की यह मांग है कि टर्न ओवर की 5 करोड़ की सीमा को बढ़ाकर 10 करोड़ किया जाय.
(4) ब्रांड वाले वस्तु पर 5 प्रतिशत जीएसटी भुगतान के कारण लघु एवं मध्यम प्रक्षेत्र के उद्योग को होने वाली परेशानियां :-ं वर्तमान व्यवस्था में ऐसा निर्धारित किया गया है कि सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ – दाल, आटा चाहे उनका निर्माण या बिक्री, लघु एवं मध्यम प्रक्षेत्र के इकाइयों 2 द्वारा किया जा रहा है या वृहद प्रक्षेत्र के उद्योगों द्वारा उनपर 5 प्रतिशत की दर
से जीएसटी लगाया जा रहा है, जबकि खाद्य पदार्थ पर जीएसटी -शून्य प्रतिशत है. इस व्यवस्था के कारण बहुत से उद्योग जो लघु एवं मध्यम प्रक्षेत्र के हैं अपना ब्रांड वापस कर रहे हैं. एसोसिएशन का यह मानना है कि लघु एवं मध्यम प्रक्षेत्र के किसी उद्योग को एक छोटा ब्रांड स्थापित करने में काफी लम्बा वक्त (3-7 वर्ष) लगता है. पुनः उनके द्वारा स्थापित ब्रांड के
उत्पाद बाजार में एक सीमित क्षेत्र में बिकते हैं। इस परिपेक्ष्य में एसोसिएशन का मानना है कि लघु एवं मध्यम प्रक्षेत्र के उद्योगों के मामले में ब्रांड के आधार पर लगने वाले 5 प्रतिशत जीएसटी से तब तक छूट की सुविधा उपलब्ध करायी जाय जब तक की ऐसे उद्योग अपने ब्रांड को स्थापित कर अपने व्यापार का कार्यक्षेत्र कम से कम देश के 3 राज्यों तक विस्तारित नहीं कर लेते हों अथवा विकल्प के रूप में लघु एवं मध्यम प्रक्षेत्र के उद्योगों को 5 वर्षों तक ब्रांड के आधार पर भुगतान करने वाले जिएसटी से विमुक्त किया जाय.
(5) रीयल इस्टेट क्षेत्र से जुड़े सुझाव :- वर्तमान में रीयल इस्टेट व्यवसाय पर जीएसटी का दर 18 प्रतिशत है. रीयल इस्टेट प्रोजेक्ट में जमीन की कीमत काफी ज्यादा होने के कारण सरकार 33 प्रतिशत का एवेटमेंट दे रही है, जो बहुत ही कम है. इस परिपेक्ष्य ने एसोसिएशन ने जीएसटी काउंसिल के समक्ष यह मांग रखी है कि मिलने वाले एवेटमेंट का दर बड़े शहरों
;ज्पमत.प् बपजपमेद्ध के मामले में 75 प्रतिशत हो, मझोले -शहर ;ज्पमत.प्प् बपजपमेद्ध के मामले में 60 प्रतिशत हो तथा छोटे -शहर ;ज्पमत.प्प्प् बपजपमेद्ध के मामले में 50 प्रतिशत हो. अथवा विकल्प के रूप में रीयल इस्टेट व्यवसाय में उपलब्ध करायी गयी इनपुट टैक्स क्रेडिट को हटा कर जीएसटी की दर 5 प्रतिशत किया जाय.
(6) जीएसटी कर व्यवस्था में वर्तमान में उपलब्ध करायी गयी कम्पोजिशन स्कीम को एसएमई के क्षेत्र से जुड़े सेवा क्षेत्र में भी उपलब्ध कराने की वकालात एसोसिएशन ने काउंसिल के समक्ष की है.
(7) वर्तमान में बहुत से ऐसे उद्योग हैं जिनके कच्चे माल पर लगने वाले जीएसटी का दर उनके द्वारा उत्पादित माल पर लगने वाले जीएसटी दर से अधिक है. ऐसी स्थिति में उन उद्योगों को कच्चे माल के खरीद पर लगने वाले जीएसटी का मिनहा अन्तिम रूप से उत्पादित वस्तु के बिक्री पर भुगतान होने वाले जीएसटी से नहीं हो पाता है. यद्यपि बचे हुए कर के वापस किए जाने का प्रावधान है लेकिन इसे वापस पाने की प्रक्रिया जटिल होने के कारण इसका लाभ उद्योगों को नहीं मिल पा रहा है. एसोसिएशन ने इसके मद्देनजर रिफण्ड की प्रक्रिया को सरल बनाने का अनुरोध किया है.
(8) ट्रांस1 फार्म की जांच :- व्यवहार में ट्रांस-ंउचय1 फार्म की जांच के माध्यम से विभाग द्वारा अनेक तरह के अनावश्यक कागजात की मांग के साथ साथ पंजीकृत करदाता को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए भी कहा जा रहा है, जो जीएसटी की मूल भावना के विपरीत है. इससे इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा मिलता है. एसोसिएशन ने इस बिन्दु को भी काउंसिल के समक्ष अपने ज्ञापन के माध्यम से उठाया है तथा यह सुझाव रखा है कि ट्रांस-1 फार्म की जांच के लिए एक प्रक्रिया निर्धारित की जाय तथा उसे विस्तृत रूप से प्रचारित किया जाय.
(9) माल के आयात एवं भाड़ा पर आरसीएम के अंतर्गत कर प्रावधान :- वर्तमान व्यवस्था में बाहर से माल आयात करने पर, माल की लागत में बीमा मूल्य एवं भाड़ा को जोड़ कर आईजीएसटी लगता है। संशोधित नियम के अनुसार आरसीएम के अंतर्गत माल भाड़ा पर 5 प्रतिशत टैक्स की देयता बनेगी और यदि टैक्स योग्य परिवहन मूल्य उपलब्ध नहीं होगा तथा
सीआइएफ मूल्य के आधार पर माल आयात किया जायेगा तो आइजीएसटी भुगतान के लिए सीआईएफ का 10 प्रतिशत स्वतः गणना स्वरूप लिया जायेगा जो कि उचित एवं तर्क संगत नहीं है. क्योंकि सीआईएफ के अंतर्गत वस्तु के परिवहन मूल्य (भाड़ा) पर कर भुगतान किये जाने के पश्चात पुनः आरसीएम के अंतर्गत कर भुगतान की मांग एक तरह से दोहरा करारोपण है। एसोसिएशन द्वारा इस बिन्दु पर जीएसटी काउंसिल से विचार करने का आग्रह किया है.
(10) जीएसटीआर-3बी एवं जीएसटीआर 1 का पुनरीक्षण :- अभी प्रत्येक रजिस्टर्ड डीलर (आईएसडी एवं कम्पोजिशन व्यक्ति के अलावा) को जीएसटीआर-1, जीएसटीआर-2 तथा इन पर आधारित जीएसटीआर-3 मासिक आधार पर प्रस्तुत करना है तथा दाखिल रिटर्न में किसी तरह के संशोधन का प्रावधान भी नहीं है। इसमें होने वाले कठिनाइयों के मद्देनजर जीएसटी
काउंसिल द्वारा जीएसटीआर- 3बी लागू किया जो टैक्स की गणना एवं भुगतान हेतु है। जीएसटीआर- 2 एवं जीएसटीआर-3 को निलम्बित रखा गया है. करदाताओं को केवल जीएसटीआर-1 एवं जीएसटीआर-3बी प्रस्तुत करना है. चूंकि जीएसटीआर-3बी केवल टैक्स गणना हेतु है, अतः एसोसिएशन ने सुझाव रखा है कि जीएसटीआर- 3बी में भूल सुधार करने का प्रावधान भी किया जाय. चूंकि जीएसटीआर-2 निलम्बित रहने के कारण जीएसटीआर 1 के आधार पर चालान मिलान नहीं हो रहा है। अतः एसोसिएशन का सुझाव है कि जीएसटीआर 1 में संशोधन करने की अनुमति दी जाय. जबतक जीएसटीआर 2 एवं
जीएसटीआर 3 निलम्बित है तबतक जीएसटीआर 3बी एवं जीएसटीआर 1 में संशोधन का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. अतः इसकी अनुमति दी जानी चाहिए.