“रमना बचाओं अभियान” ने दिखाया रंग
आरा की ह्रदय स्थली रमना मैदान पर अवैध अतिक्रमण का दौर कई सालों से जारी है,जिसे बिहार सरकार के अवर सचिव संजय दयाल ने गम्भीरता से संज्ञान लेते हुए आरा के नगर आयुक्त को रमना अतिक्रमण मुक्त करने का निर्देश दिया है. साथ ही जल्द से जल्द इसपर किये गए कार्रवाई को जन प्रशाखा-09 को उपलब्ध कराने का निर्देश भी दिया है.
क्या है मामला?
दरअसल लगभग 1 साल पूर्व से रमना को हरा भरा और सुंदर बनाने के लिए रंगकर्मी श्रीधर शर्मा,मंगलेश तिवारी, डॉ बी एन सिंह, अशोक मानव,विवेकदीप पाठक,सुधीर शर्मा आदि के नेतृत्व मे “रमना बचाओं अभियान” चलाया जा रहा है, जिसमें शहर के डॉक्टर,शिक्षक,कलाकार,पत्रकार,नौकरी पेशा लोग,अधिवक्ता,सामाजिक कार्यकर्ता, महिलाएं और बच्चों समेत लगभग 3 दर्जन लोग शामिल हैं. सिविल कोर्ट के सामने अतिक्रमणकारियों ने पहले बांस बल्लों से एक बड़ा भूभाग (लगभग 5000 वर्गफुट, जिसमें स्थायी 2000 वर्गफुट और 3000 वर्गफुट अस्थायी) को पार्किंग बना अपने कब्जे में लिया और उसपर धीरे धीरे स्थायी निर्माण भी शुरू कर दी. इस बात पर जब उस समय के तात्कालिक नगर आयुक्त से पूछा गया, जिसमे निगम द्वारा रमना को डंपिंग ग्राउंड बनाने संबंधी बातें पूछी गयी तो नगर आयुक्त ने रमना को निगम की सम्पति करार करते हुए वहां कुछ भी रखने की दलील दे दी. इस बात को लेकर रमना बचाओ अभियान से जुड़े लोगों और शहरवासियों ने नगर आयुक्त के इस बयान पर उसका पुतला फूंका. साथ ही अखबार में आए उसके इस बयान को आधार बनाते हुए नगर विकास के अवर सचिव को अभियान से जुड़े सदस्य डॉ बी एन तिवारी ने एक पत्र भेजा. जिसमें रमना पर अतिक्रमण की बात को रखा गया था. इस पत्र के आलोक में अवर सचिव ने रमना से अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया है.
कैसे हुआ यह अवैध निर्माण
आरा कोर्ट में बम ब्लास्ट के बाद गाड़ियों को
रमना में पार्क करने के लिए सलाह दी गयी। इस सलाह के बाद रमना के चाहरदिवारी को अतिक्रमणकारियों ने तोड़ अस्थायी पार्किंग स्टैंड चालू कर दिया। इतना ही नहीं पार्किंग स्टैण्ड में प्रत्येक गाड़ियों से निगम के रसीद की प्रति छापकर पैसे भी वसूले जाने लगे। रसीद देखकर लोगों को यही लगता था कि निगम ने स्टैंड चालू किया है। शायद यह वजह ही था कि कोई आवाज नहीं उठाता।
पर्दे के पीछे सबकी है सहभागिता
सोचने में अजीब लगता है कि प्रशासन के नाक के नीचे, कोर्ट के सामने,जहां पास में ही नगर निगम और कई सरकारी ऑफिस चलते हों वहां निगम का रसीद काटकर अतिक्रमणकारी स्टैंड चला रहे हों और किसी को कानो कान खबर नहीं। निगम का जवाब तो और हास्यास्पद था। जब लिखित अतिक्रमण की सुचना दी गयी तो निगम मानने को तैयार नहीं हुआ कि रमना में कोई अतिक्रमण है। यह बात पुरे सरकारी तंत्र पर एक यक्ष प्रश्न था?
पूर्व में भी कई स्थायी निर्माण से अतिक्रमित है रमना
ऐसा नहीं है कि रमना मैदान में यह पार्किंग स्टैंड कोई पहला स्थायी स्टैंड है। इसके पूर्व से ही मैदान में, शौचालय,नागरी प्रचारिणी,मंदिर,कॉलेज,मज़ार, स्टेडियम, शहीद भवन और मॉन्टेशरी स्कुल जैसे स्थायी निर्माण रमना मैदान का अतिक्रमण ही है.
रमना मैदान का इतिहास
इतिहास के पन्नों में इस मैदान को केशर-ए-हिन्द कहा गया है. भारत के प्रथम स्वतन्त्रता आंदोलन 1857 के क्रांतिकारी बाबु कुंवर सिंह के विजय का गवाह है यह मैदान, जो उस वक्त सबसे ऊंचे स्थान पर था. इसे टीला भी कहा जाता था. आरा हाउस में अंग्रेजों को 4 दिनों तक घेरने की रणनीति और उनपर निगरानी आंदोलनकारी इसी टीले से किया करते थे. उसके बाद कई आंदोलनों और राजनितिक परिवर्तन के कई सभाओं का साक्षी बना है रमना, जिसमे फ़िल्मी सितारों से लेकर प्रधानमन्त्री तक का आगमन और संबोधन शामिल है.
कैसे नाम पड़ा रमना
प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो श्याम बिहारी राय कहते हैं, कि रमना, रमण शब्द से बना है, जिसका अर्थ है सुन्दर, सुखद, रमणीय,और मनोरम होता है. इससे हीं रमण, रमणी, आराम, विराम जैसे शब्द बने हैं। इस शब्द में सौन्दर्य, सुख आनंद, हर्ष, प्रसन्नता व विलास जैसे भाव हैं.पहले गांव के आस-पास की वह भूमि जिसे पशुओं के चरने के लिए सुरक्षित कर दिया जाता था ‘रमना’ कहलाती थी. ऐसा माना जाता है, कि अंग्रेजों के समय में रमना के निकट बसे अश्वारोही पुलिस कैंप के घोड़ों के चरने के लिए हीं यह मैदान सुरक्षित था. उस समय हरी घासों और वृक्षों से घिरा यह मैदान इतना रमणीय था कि इसका नाम ही रमणीय से रमना हो गया.
उच्च न्यायालय के आदेश की उड़ रही है धज्जी
2010 में सिविल कोर्ट के अधिवक्ता राजिव कुमार सिन्हा ने एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमे रमना में फैले अतिक्रमण को हटाने संबंधी बातें कही गयीं थी. उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि किसी भी तरह का सार्वजनिक मैदान उस शहर के लिए फेफड़े के समान होता है. इस मैदान में सरकार को भी बिना मैदान या स्थानीय नागरिकों का फायदा-नुकसान जाने किसी भी तरह के निर्माण का अधिकार नहीं है.बावजूद इसके अतिक्रमित स्थायी निर्माणों को हटाना तो दूर,एक नए पार्किंग शेड का निर्माण धड़ल्ले से जारी है. मैदान में कई जगह दीवाल तोड़ दिया गया है,जिसमें अब कारों की पार्किंग भी होने लगी है.इस अवैध पार्किंग पर जिलाप्रशासन पर ध्यान नहीं है .
आरा से ओ पी पांडेय की रिपोर्ट