सात दिवसीय ज्ञान यज्ञ के दौरान श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के परम शिष्य लक्ष्मी प्रप्पन श्री जीयर स्वामी जी महाराज आज महानद सोनभद्र की अविरल प्रवाह के स्वर्ण बालुका राशि पर खुले अम्बर के नीचे कोइलवर में साधू व संत गुरु के बारे में प्रकाश डाला . उन्होंने कहा की हर त्रिशूल धारण करने वाले व् लाल कपडा पहनने वाला संत साधू नही होते . कुछ लोग धर्म की आड़ में संत को बदनाम कर रखे हैं .
यह बात प्रवचन के दौरान जीयर स्वामी जी महाराज ने श्रीमुख से कही . इससे पहले श्री जीयर स्वामी जी महाराज कोइलवर में पहुँचे . जहाँ श्रद्धालुओ की भारी भीड़ स्वामी जी के इन्तजार में पलके बिछाए हुए थे . सोनभद्र भगवान् की धरती पर कोइलवर में जीयर स्वामी जी महाराज का भव्य स्वागत किया गया . हजारो की संख्या में श्रद्धालुओ ने कोईलवर चौक से जयकारा मनाते हुए सोनभद्र के सुनहले रेत पर स्वामी जी को ले गए . कोईलवर में सोन नद के सुनहले रेत पर जीयर स्वामी जी का सात दिवसीय प्रवास के दौरान सात दिवसीय महाज्ञान यज्ञ के पहले दिन श्री जीयर स्वामी जी के मुखारविंद से बही ज्ञान की गंगा . स्वामी जी ने प्रवचन के दौरान कहा की मानव जीवन में संस्कार व सांस्कृतिक दोनों जरुरी है .
मानव जीवन साधन का उपयोग कैसे हो . संस्कार से ही साधन व संसाधन होगा . आज के परिवेश में साधन व संसाधन का आभाव है . इसलिए जीवन में जो होने वाला है होकर रहेगा उसकी व्यर्थ चिंता नही करनी चाहिये . लेकिन अपने द्वारा जगत को संचार करता है उन्हें भी याद कर लीजिये . शास्त्र रूपी चाभी का उपयोग जीवन में करें . स्वामी जी ने बताया की धर्म तो सभी के होते है . आपके प्रति जो प्रतिकूल हो उसी का नाम तो धर्म है . उन्होंने कहा कि धर्म दो तरह के होते हैं . एक धर्म और दूसरा परम धर्म . धर्म मर्यादा सीखाता है और परम धर्म है परमेश्वर को जानना . उन्होंने कहा कि ईश्वर और परमेश्वर में भी अंतर है . जो संसार में लौकिक हुए जैसे राम, कृष्ण आदि यह ईश्वर हैं . पर परमेश्वर तो परम सत्ता है . जो पूरे सृष्टि में विद्यमान है .
उन्होंने कहा कि परोपकार से बड़ा धर्म नहीं. अर्थात जो दूसरों की मदद करता है . भले वह पूजा न करे पर वही धार्मिक है . अगर कोई किसी को कष्ट पहुंचाते हैं तो उससे बड़ा कोई पापी नहीं है . प्रवचन के अंत में श्राद्धलुओ को सादगी का मूलमन्त्र दिया . सदाचार से जीवन जीने वाला व्यक्ति ही परमात्मा की कृपा पाते है.अतः व्यक्ति को सदाचारी होना चाहिये . सृष्टि से लेकर मानव जीवन को रचना का सूत्रधार तो एक ही है . जो जैसा चाहता है वैसा होता है .
कोइलवर से आमोद