जंगल में पानी के कमी जैसे विषय पर फिल्म कार्यशाला का आयोजन नेतरहाट में किया गया.इस कार्यशाला में कई फ़िल्में बनी और फिल्म फेस्टिवल में दिखाई भी गई .इस कार्यशाला में बतौर कलाकार शामिल हुए पुनीत तिवारी ने फिल्म और समस्या को बड़े करीब से देखा है उनकी कलम और उनका अनुभव कुछ सीखने में मददगार साबित होगी नए कलाकारों के लिए.वैसे सरकार के लिए फायदेमंद हुई ये कार्यशाला.
नेतरहाट फिल्म वर्कशॉप- विषय-पानी
दिल्ली में रहते हुए जब पता चला झारखण्ड के नेतरहाट जंगल में पानी की कमी जैसे गंभीर मुद्दे के ऊपर फिल्म वर्कशॉप रखा गया है और रखने वाला दूसरा कोई नहीं हमारे झारखण्ड के ‘श्रीराम डाल्टन’ हैं,जिन्हें हाल में उनके द्वारा बनाई गयी फिल्म ‘द लॉस्ट बहरूपिया’ के लिए नेशनल अवार्ड से सम्मानित भी किया जा चुका है.उनके किए गए उंदा काम से अवगत तो था ही पर ये पहला मौका था जहाँ मैं श्रीराम सर के मेंटरशिप में फिल्म वर्कशॉप का हिस्सा बनने वाला था.
नेतरहाट के वर्कशॉप के 10 दिन
शारीरिक अभ्यास
बिशारद बेसनेट जो काफी समय से थिएटर में सक्रिय हैं प्रत्येक दिन कुछ नया लेकर आते थे,शुरुआत कुछ योगाभ्यास,कलरी (युद्ध कौशल कला के कुछ गुण),थिएटर गेम्स से हुई साथ ही साथ आपके चलने यानि की आपके Walk,आपके फोकस,आपके साँसों की गति,आपके एक्सप्रेशन,मन और शरीर को केन्द्रित कर,सहज होना सिखाया गया,वैसे ये काफी गहरी चीजें हैं जो प्रतिदिन के अभ्यास से सुदृढ़ होती हैं.
4 तंबू गाड़ने का प्रयोग
पहले दिन ही 4 तम्बू तैयार करने के लिए सारी चीजें उपलब्ध हो चुकी थी.एक महाशय ने,एक तम्बू तैयार करके दिखायाइसके बाद तो शेष बचे 3 तम्बुओं को हम सबने मिलकर खूंटा गाड़ने से लेकर रस्सी बाँधने तक के कार्य को जिम्मेवारी पूर्वक तैयार किया. 4 तंबुओं को अलग-अलग दूरी पर तालाब के किनारे खूबसूरती के साथ लगाया गया.हमें पहले ही बता दिया गया था कि हम अपने साथ अपने प्रतिदिन इस्तेमाल की जाने वाली चीजें साथ रखें जैसे थाली,चम्मच,ओडोमोस,टोर्च इत्यादि.हम दिमाग में फिगर आउट करके चले थे कि हमें तम्बू में भी सोना पड़ सकता है.वहीँ सफाई के नज़रिए से हमें सख्त निर्देश भी मिला था कि “इस जगह को बिलकुल भी गन्दा नहीं करना है”जिसे ग्रुप के लोगों से कायदे से समझा.
खुले आसमान के नीचे वर्ल्ड
प्रोजेक्टर की सहायता से खुले आसमान के नीचे वर्ल्ड सिनेमा देखना.ये अपने आप में ही कितन अदभुत है कि रात है, मतलब घुप्प अँधेरा, शाम के 8 बजे का वक़्त हमारे ठीक पीछे 35 फीट की दूरी पर बड़ा सा तालाब है.जहाँ बिलकुल छोटे-छोटे मेढ़क की अधिकता पाई जाती है. हम उन्हें बिना छेड़े अपने काम में रमे थे. हमारे सामने 25 फीट की दूरी पर लगभग 30*20 फीट का एक पर्दा,दो बड़े बड़े पेड़ के तनों में रस्सी की सहायता से बाँधा गया था,जहाँ जेनसेट की बिजली से प्रोजेक्टर के जरिये वर्ल्ड सिनेमा दिखाया जा रहा था’मेल गिब्सन’ और ‘अकिरा कुरोसोवा’ की फिल्में इस अंदाज़ में देखना वाकई मजेदार था.वहां के स्थानीय लोग भी इसे बखूबी देख-समझ रहे थे.हमें ये भी समझना ही होगा कि सिनेमा तभी कारगर हो पायेगा जब इसे अंतिम दर्शक वर्ग तक जमीनी हकीकत को समझते हुए पहुँचाया जाए, अतः इस परिपेक्ष में कहें तो सिनेमा सभी लोगों तक संवाद करता हुआ प्रतीत हुआ.मेरा मानना है कि ये सारी चीजें इसीलिए सम्भव हो पायीं क्यूंकि इस वर्कशॉप के कैंप डायरेक्टर’श्रीराम डाल्टन’ने इसे बखूबी डिजाईन किया था.
फिल्म मेकिंग
फिल्म बनाने का आधार स्तम्भ सोच है,इस बार का मुद्दा पहले से तय था.हम सिर्फ और सिर्फ पानी के विभिन्न आयाम के बारे में सोच रहे थे.हमें अलग अलग ग्रुप में बाँट दिया गया था.सबने शुरुआत में पानी के विषय पर स्वलिखित कहानी सुनाई व उस पर बातचीत की गयी.अलग-अलग ग्रुप से अब हमारे पास कई बेहतरीन कहानियाँ आ चुकी थी.वहीँ हमारे ही बीच से ही निर्देशक,अभिनेता,कॉस्टयुम डिज़ाइनर,कास्टिंग डायरेक्टर,सिनेमेटोग्राफर भी उठ खड़े हुए.देर बिना किये हम 13 फ़िल्में 10 दिनों में शूट कर चुके थे और 6 फिल्मों की एडिटिंग भी समाप्त हो चुकी थी. मैंने बतौर अभिनेता दो लघु फिल्मों में अभिनय किया.पहली फिल्म ‘प्याऊ’ में वेटर की भूमिका निभाई.यह फिल्म मध्यम वर्ग के pshycological complex को दिखाता है. फिल्म ‘प्याऊ’ के लेखक व निर्देशक ‘सत्येन्द्र कुमार’ हैं. सत्येन्द्र जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय से सिनेमा स्टडीज विषय में पीएचडी कर रहे हैं.मेरी दूसरी फिल्म ‘ट्रिब्यूट’ है जिसके कहानीकार युवा लेखक व अभिनेता ‘राहिल ज़ुबैद’ हैं.निर्देशन ‘आरजी श्याम’ ने किया है जो एक प्रेम कहानी है.इस वर्कशॉप में कई genre की फिल्में देखने को मिलेंगी.कुछ फिल्में आशावादी है तो कुछ फिल्में फ्यूचर के एप्रोच से बनाई गयी है’मेघा श्रीराम डाल्टन’ द्वारा निर्देशित फिल्म में एक ऐसे गाँव की कहानी दिखाई गयी है जहाँ पानी की कमी की वजह से बेटी की शादी करने से लोग कतराते नज़र आने लगे हैं।
लेस्ले लेविस सर का नेतरहाट में आगमन
लेस्ले लेविस सर को कौन नहीं जानता?
सर ने वर्कशॉप में झारखंड के फोक म्यूजिक को बड़े ही तबियत से रिकॉर्ड किया है, चाहे वो नगाड़े व मान्दल की थाप हो या फिर लोक कलाकारों के गायकी की खूबसूरती. सर झारखंड के प्रत्येक अव्यय को बड़े ही एहतियात के साथ इक्कठा कर अंतराष्ट्रीय पटल पर ले जाना चाहते हैं जिसके लिए यह प्रदेश उनका आभारी रहेगा.मुझे पक्का पता था, ये वर्कशॉप मेरे अनुभव क्षेत्र को और प्रगाढ़ करेगा, वैसे भी प्रकृति किसे नहीं भाती. एक अभिनेता के रूप में मुझे प्रकृति,पेड़,पौधे से जुड़े रहने का 10 दिनों का सुनहरा मौका मिला. दिल्ली में ये सब देखने को बिलकुल भी नहीं मिलता,सिर्फ दूर दूर तक फैली ऊँची-ऊँची इमारतें दिखलाई पड़ते हैं और गर्मी की व्यथा बिल्कुल न पूछिए.
खैर, तमाम रुकावटों के बावजूद मैं लगभग 1300 किलोमीटर का सफ़र तय कर पहुँच चुका था नेतरहाट और यहाँ पहुँचते ही शाम में बारिश और आंधी से आवभगत भी हुई.
वहीं अगले दिन बर्फबारी,कुल मिलकर यहाँ का वातावरण मुझमें नयी स्फूर्ति का संचार कर रहा था.चाहे सुबह 4 बजे उठकर सूरज को उगते हुए देखना हो या फिर चाय की दुकान पर सुबह की चाय हो ,सब कुछ अपने आप में आनन्दायक था.ख़ास कर झारखण्ड के लोक नृत्य, गीत, और यहाँ के भोले भाले सीधे-सादे,सहज व सरल इंसान.सभी लोगों ने यथा सम्भव मदद की हैं.हम उनके आभारी हैं.अभी नेतरहाट से वापस आने के बाद महसूस हो रहा है कि शायद मैं किसी अन्य लोक में था.हालांकि एक बात तो नेतरहात में पानी के विभिन्न आयामों पर बनी शोर्ट फिल्मों की स्क्रीनिंग डाल्टनगंज, रांची व जमशेदपुर के जागरण फिल्म फेस्टिवल में हुई.रांची में फिल्म स्क्रीनींग के दौरान दर्शकदीर्घा से एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पानी वर्कशॉप का नतीजा है कि पन्द्रह दिनों में राज्य सरकार ने डेढ़ लाख डोभा और दस हजार तलाब बनवाने के आदेश दिए हैं,बरसात के बाद चार लाख डोभा और बनाये जायेंगे. जो एक प्रकृति को संरक्षित करने का शुभ संकेत है.
(मैं ‘पुनीत’ फिलहाल दिल्ली में रहकर थिएटर प्रैक्टिस करता हूँ।)