सरकार के पास नहीं है कोई जवाब -कैग
उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं देने से मामला फंसा
पंचायतों ने नहीं दिया 34 हजार करोड़ रुपये का हिसाब
केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से पंचायतों को हर वर्ष करोड़ों रुपये अनुदान के तौर पर मिलते हैं, परंतु इन रुपयों के खर्च का कोई लेखा-जोखा सरकार के पास नहीं है. वर्तमान में 34 हजार करोड़ रुपये के उपयोगिता प्रमाण-पत्र का मामला अटका हुआ है. उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं देने के कारण यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि सरकार से मिले अनुदान के ये रुपये किस-किस योजना में कितने खर्च हुए. रुपये कहाँ खर्च हुए हैं, इसका कोई लेखा-जोखा सरकार के पास नहीं है. सीएजी की रिपोर्ट में भी बकाया यूसी को लेकर बार-बार मांग की जाने के बावजूद सरकार के पास देने के लिए कुछ भी नहीं है वहीँ सीएजी ने उपयोगिता प्रमाण पत्र जल्द से जल्द करने के लिए सरकार को कराने के लिए कहा है.
उपयोगिता प्रमाण नहीं देने से हर साल इसमें बढ़ोतरी ही होती जा रही है. हर वर्ष सरकार पंचायतों का अनुदान जितना ज्यादा बढ़ाती जा रही है, लंबित यूसी की संख्या उतनी ज्यादा बढ़ती जा रही है. वर्ष 2002 से 2014 तक दो हजार करोड़ रुपये का यूसी सभी पंचायतों में बकाया था. 2014 से 2021 तक इस बकाया राशि में 32 हजार करोड़ की बढ़ोतरी हो गयी है.
वर्षों से हजारों करोड़ रुपये की बकाया राशि लंबित यूसी की सूचि में जुटती जा रही है. 2002 से 2014 तक दो हजार करोड़ रुपये का यूसी बाकी था. 2014-15 में लंबित यूसी में 700 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हो गयी. इसी तरह 2015-16 में 600 करोड़, 2016-17 में 4,500 करोड़, 2017-18 में आठ हजार करोड़ और 2019-20 में नौ हजार करोड़ रुपये यूसी में बढ़ोतरी हुई. इस तरह साल- दर- साल इसमें बढ़ोतरी होती जा रही है. 2002 से लेकर 2021 के उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं मिलने से सरकार को भारी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है. इस मामले को लेकर विपक्ष के नेताओं का मानना है ये सब प्रशासनिक विफलता का फल है.
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