1942 के क्रांतिकारियों की है भूमि लसाढ़ी
आरा मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर है, अगिआंव प्रखड का गाँव लसाढ़ी से ओम प्रकाश पाण्डेय की रिपोर्ट जिसे क्रांतिकारियों का गाँव कहा जाता है. इस गाँव के किस्से जिले ही प्रदेश से बहार भी लोग सुनाते हैं. भारत छोड़ो आंदोलन में सन 1942 में देशभक्तों एक महिला समेत 12 लोगों को अंग्रेजी हुकूमत ने गोलियों से भून डाला था. 1942 के उस मंजर का आँखों देखा हाल का एकमात्र गवाह आज भी हैं 96 वर्षीय घरभरन सिंह यादव.लसाढ़ी गाँव के पच्छिम टोला में रहने वाला यह नायक भले ही अपने उम्र की शतक की ओर अग्रसर है, शरीर बुढ़ापे को दर्शाता हों, आवाज की वेग धीमी पड़ गयी हो, पर उस जंग का नाम लेते हैं स्वतः स्फूर्त एक ऊर्जा का आगमन हो जाता है.
आजादी के दीवाने इस नायक से उस घटना को पूछते हीं आँखों में एक चमक आ जाती है, और घटना को ऐसे बताते हैं कि सुनने वाला 1942 में ही पहुँच जाता है. लोमहर्षक उस घटना को सुनते ही रोम-रोम रोमांचित हो उठते हैं, साथ ही अंग्रेजों की बेरहमी सुनकर दिल में उबाल भी आ जाता है.
क्या थी घटना.?
13 सितम्बर 1942 को आजादी के आह्वाहन वाले उस साल लोगों ने अगिआंव और सहार के डाकबंगले समेत सहार स्थित नहर ऑफिस को भी लोगों ने जला दिया. खिड़कियां,दरवाजे और अन्य बचे समानों को नहर में फेंक दिया. साथ ही वहां रखे 45 हजार रुपये भी लूट लिए.
इस घटना के बाद अंग्रेज सिपाही डिहरी से अगिआंव बंगले पर आने वाले थे. इस बात की सुचना पास के सुतुहारी गाँव के रामसकल राय ने दी साथ ही ये भी बताया कि गाँव अंग्रेज लोगों की धर-पकड़ भी करेंगे.गाँव वाले इस खबर को सुनने के बाद लाठी,भाला, तलवार और अन्य पारम्परिक हथियारों के साथ गोलबंद हो गए. अंग्रेजों से इस लड़ाई के लिए पास के चासी और ढकनी गाँव के लोग भी तैयार हो गए. उस समय नहर से हो के ही आना जाना था, जिसमे नाव से लोग आते जाते थे. इस नहर में अंग्रेजो के नाव को रोकने के लिए जगह-जगह नहर में पेड़ के बड़े-बड़े डाल दाल दिए गए. लेकिन 15 सितम्बर को अंग्रेज इन अवरोधों के बाद भी लसाढ़ी पहुँच ही गए.
महिलाओं ने भी लिया था मोर्चा
अंग्रेजी फ़ौज के गाँव में जाते ही अकाली देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने गर्म पानी में मिर्ची घोलकर रखा थे जिसे अंग्रजी फौजों पर फेंकना शुरू किया.डंडे,पत्थर,ईंट के अलावे जिसे जो मिला उससे मुकाबला किया. इस हमले के बाद ही अंग्रेज हरकत में आ गए. उन्होंने किसी तरह अपने आप को संभाला और फिर गाँव वालों पर हमला कर दिया। महादेव सिंह ने अंग्रेजो के पैर में भाला घोप दिया. फिर क्या था अंग्रेजों ने बेरहमी से गोलियों से सबको चलनी कर दिया। अंग्रेजों ने सबको जान से मारने की योजना बना ली. 12 लोग मारे गए, 8 लोग जख्मी हुए. 50 लोगों को बन्दुक के कुंदों से पीटकर अधमरा कर दिया और 25 लोगों को जेल भेज दिया गया.
10 हजार का इनाम था 2 लोगों पर
अंग्रेजी हुकुमत से उस लड़ाई में 96 वर्षीय ज़िंदा नायक घरभरन सिंह यादव के साथ इनके साथी रामप्रीत सिंह पर अंग्रेजो ने ज़िंदा या मुर्दा पकडने के लिए 10 हजार का इनाम रखा था.उस स्वतन्त्रता आंदोलन के एकमात्र जिन्दा गवाह बचे घरभरन सिंह बताते हैं कि उन्होंने एक अंग्रेज सैनिक को पत्थर से मार कर अधमरा कर डाला था. जब गोलियां चलने लगीं तो एक गोली इनके बाएं पैर में लग गयी लेकिन फिर भी अंग्रेजो के हाथ नहीं आये. अंग्रेजों ने इन्हें और इनके साथी को पकड़ने के लिए कुख्यात करार कर इनाम घोषित कर दिया.
राजकीय सम्मान समारोह लसाढ़ी में आज
आज शहीदों के सम्मान में राजकीय सम्मान का आयोजन है जिसमें प्रभारी मंत्री विजय प्रकाश के साथ स्थानीय सांसद,विधायक,जिलाधिकारी, सहित कई पदाधिकारी भी शामिल होंगे.
लसाढ़ी से ओम प्रकाश पाण्डेय की रिपोर्ट