कई पीढ़ियों से बेच रहे हैं अंगूठी
काले घोड़े की नाल की अंगूठी बेचने का नायाब तरीका
टमटम के जरिये बरेली से यहाँ आये
किसी भी प्रोडक्ट को बेचने के लिए तरह-तरह के प्रचार के हथकंडों को आये दिन हम टीवी और अन्य विज्ञापनों के जरिये देखकर अचंभित और आकर्षित होते हैं.लेकिन कभी-कभी विज्ञापन या सेल्स के कुछ ऐसे अनोखे अंदाज राह चलते छोटे जगहों पर दिख जाते हैं जो भुलाए नहीं भूलते. कुछ ऐसा ही नजारा आज आर में क्लब रोड से गुजरते दिखा जब सड़क के किनारे एक टमटम पर दो स्पीकर से आवाज आ रही थी-“शनि ने अगर परेशान कर दिया हो और आपकी दशा नहीं सुधर रही हो तो काले घोड़े के नाल से बने इस अंगूठी को लीजिये और फिर देखिये….”
एक झटके में लगा कि मर्दानी ताकत की दवा बेचने वाले सड़क के किनारे बैठे बंजारा प्रजाति के लोग हैं. लेकिन जब रुककर देखा तो दो काले घोड़े और एक टमटम पर दो बच्चे दिखे. टमटम भी आरा जिले के टमटम से अलग तरह का दिखा. टमटम के पास गया और दोनों बच्चे से कुछ जानकारियां ली.
टमटम पर बैठे दो लड़के रोहित और उमेश बांस बरेली, इस्माइलपुर जिला बदायूँ के रहने वाले थे. दोनों हम उम्र थे एक 16 और दूसरा 14 वर्ष का था. रोहित जहाँ 7वीं तक पढ़ा है वही उमेश 6वीं तक ही पढ़ सका है. बरेली से ये दोनों एक माह पहले से बरेली से निकले हैं. रास्ते भर काले घोड़े का नाल निकालते और उससे बनी अंगूठी बेचते चलते हैं. पुश्तैनी ब्यापार है ये.
4 पीढ़ियों से नाल की अँगूठी हैं बेच रहे
रोहित ने बताया कि 4-5 पीढ़ियों से काले घोड़े के नाल की अंगूठी बेचकर ही परिवार चल रहा है. कई पीढ़ियों से पूरा परिवार ही इसी धंधे को करता है. घर में कई घोड़े हैं जिसे घर के अन्य सदस्य भी देश के अलग अलग हिस्सों में ले जाते हैं और उनसे निकले नालों की अंगूठी बना बेचते हैं
प्रत्येक दिन 200-300 बिकती हैं अंगूठियां
बातों ही बातों में रोहित ने बताया कि हर रोज लगभग 200-300 के बीच अंगूठियां बिक जाती है. कभी कभी किसी जगह 100 ही बिक पाती हैं. शाम हो जाने पर जिस शहर में होते हैं वही पड़ाव दाल देते हैं टमटम पर ही. फिर अगर शहर का भ्रमण लग गया हो तो ठीक वरना उस शहर में 2-3 दिनों तक अंगूठियां अलग-अलग जगह घूमकर बेचते हैं और फिर अगले शहर की ओर प्रस्थान हो जाता है.बदायूँ के अँगूठी बेचने वाले बच्चे राजगीर और उसके आगे तक जायेंगे और फिर अगले 2 माह बाद घर वापस लौटेंगे.
कैसे बनती हैं काले घोड़े की अंगूठियां
बातचीत के दरमियान रोहित ने बताया कि प्रत्येक दिन 60-70 किलोमीटर घोड़ा चलता है. दो घोड़े हैं जिससे 8 नाल प्रत्येक दिन घिस जाने के बाद निकाल लेते हैं और फिर ये क्रम हर दिन चलता है. घोड़े के पैर से निकले नालों को ये दिल्ली भेजते हैं जहाँ इन नालों से अंगूठियों का फिनिशिंग रूप देकर अंगूठी बनता है और पैकेट में बंद हो इन्हें मिल जाता है. इन पैकेटों में बंद तराशे गए चमकीले अंगूठियों को फिर ये टमटम के पास आने वाले लोगों को 10 रूपये में बेचते हैं. इसतरह में 10 रूपये में शनि देव हो जाते हैं खुश और लोगों की परेशानियां भी कम हो जाती हैं .