मरजाद_बारात
हमारा समाज एक बहुव्यावसायिक समाज है… गांधी जी ने भी कहा है कि भारत गांवो का देश है….इसका तात्पर्य जिसको जो निकालना है वो निकाले पर असल तथ्य यही है कि भारत का प्रत्येक गांव हर दृष्टिकोण से अपने आप पर ही आत्मनिर्भर रहा करते थे….आत्मनिर्भर नहीं थे तो सिर्फ और सिर्फ कपड़ों के मामले में ………शायद, इसलिए ही खादी ग्रामोद्योग का नारा लगा और भारत कपड़े के मामले में भी आत्मनिर्भर रहने लगा…
खैर , इस बात को जस का तस यहीं छोड़ते हैं और आगे बढ़ते हैं बारात मरजाद की तरफ…..
(अब यह संदर्भ भी खुद ब खुद बारात मरजाद से जुट पाता है या नहीं यह तो आगे ही पता चल पाएगा)
शादी दो संस्कृतियों, संस्कारों का मिलन रहा है हमारे समाज में… और किसी भी शादी में प्रत्येक तबके की भागीदारी सुनिश्चित है या थी ( यह पाठक पर निर्भर है वो किस संदर्भ में लेते है)।
प्रत्येक गांव में एक प्रतिष्ठित घराना होता था जो गांव के प्रत्येक तबके को आपस में जोड़ के रखता था….उस प्रतिष्ठित घराने की बालक या बालिका की शादी में बारात को मरजाद रखनें का प्रचलन हुआ करता था….
बारात मरजाद का मतलब ………
बारात के आगमन और बारात की विदाई के बीच …..एक से दो दिन का पुरी बारात का विश्राम…..
बारात को मरजाद रखनें वाले बाराती पक्ष बारात आगमन से एक दिन पहले साराती वालों के यहां (वधु पक्ष के गांव) बैलगाड़ी से पुरी बारात का रसद खानसामा के साथ भिजवा देते थे..
यही वो मौका होता था जहां दोनों गांव अपनी अपनी आत्मनिर्भरता की श्रेष्ठता साबित करने से नहीं चुकते थे….
जो स्नै:स्नै: अपभ्रंशित होकर दुषित हो अपने वजूद से भटक गया….और आज यह प्रथा भी विलुप्त हो चुकी है….( क्योंकि न हम गांव के रहे और अब न गांव भी हमारा रहा)……!!
अब आते हैं बरात मरजाद के अनुभव पर…..
वर्ष :-1980 , माह :-वैशाख-जेठ….
बारात मरजाद स्थल (यानि सरातियों का गांव):- ग्राम+ पोस्ट :- बागमझौंवा, अंचल+ थाना :- कोईलवर, जिला भोजपुर।
बारात आगमन वाले गांव का नाम:- ग्राम + पोस्ट:- बड़काडुमरा, अंचल :- आरा सदर, थाना-मुफस्सिल
जिला:- भोजपुर।
मैं सराती पक्ष की तरफ से हूं….. एक गजब का उत्साह है मेरे अंदर…. और अपने चार मित्रों के साथ बारात आगमन से तीन दिन पहले से ही डटा हुआ हूं अपने मोर्चे पर …. क्योंकि बारात आगमन से करीब दो दिन पहले मड़वान है….मड़वान का रस्म दिन में ही होना है…
गांव के युवावर्ग ने सर्वे कर लिया है एक सप्ताह पहले ही कि कौन से बंसखोप में बिना टांना वाले लंबे लंबे बांस हैं , सबनें हिदायत के साथ काटने वाले एक्सपर्ट को दिखा भी दिया है कि कौन-कौन से बांस किस किस खोंप से काटना है…बांस को काटने से ज्यादा मेहनत और दिमाग बांस को सकुशल निकालने में लगता है सो सबनें अपनी अपनी टोलियां भी बनालीं हैं… सबसे बड़ी बात नेतृत्वकर्ता स्वघोषित नहीं है… सबने बना दिया है…. जाहिर है वो गांव का बांस और माड़ो का एक एकस्पर्ट ही रहा होगा…
हमारी मुख्य भूमिका मंडप सजानें की है… मुझे भी अपनें दसियों मित्र की बहनों और बुआओं की शादी में मंड़प सजाने का अब तक अनुभव हो चुका है ,पर बारात मरजाद का पहला अनुभव है , सो काफी तनाव है ….रह रह के हम चारों मित्र आपस में बात कर रहे हैं, कि भाई कुछ भी हो इज्जत नहीं जानी चाहिए ….न अपनीं और न सरातियों की ….!!
बीच-बीच में हम लोगों से भी सलाह ली जा रही है…
दर्जनों बांस कट के आ चुके हैं ….. उसमें सबसे लंबे और सीधे बांस को अलग छांट लिया जाता है और और एक साइज के नौ-दस बांस अलग कर लिए गए हैं…अब उसे चिकना करनें का काम शुरू है… नेतृत्वकर्ता बार बार बांस चिकनानें वाले एक्सपर्टिज को हिदायत भी दे रहे हैं कि …शहर से लऽइका आइल बाड़े सं…एकनीं के हाथ ओथ कटाये छिलाये के ना चाहीं….
अब हमलोग ज्यादा तनाव में हैं… इस बार हम लोग साड़ी का इस्तेमाल तो कर रहे हैं मंडप सजाने में पर वो सिंथेटिक साड़ियां नहीं हैं…
. चूंकि बड़ा घराना है बहुत बड़ा सा परिवार है….पुरे परिवार के सभी आंमत्रित मेहमानों की ही संख्या पांच सौ के पार है….कऽइ सारी भाभियों और ढ़ेर सारी दीदीयों ने अपनी अपनी बनारसी साड़ियां निकाल दी हैं…
उसमें से एक भाभी ने कान में भुनक दिया है कि …..ए बबुआ जी …तनिं देखब सभे … साड़ी जतिना लागे लगा दीं सभे बाकि बबुनी जी के माड़ो लहरदार लागे के चाहीं…
सिंथेटिक साड़ियों की एक खुबी थी कि… वो इजिली मैनेज हो जाता था , जहां से मन करे घुमकर चुन भी बन जाता था…
ये बनारसी….बाप रे….ये तो चुन करनें में ही दम सरका रहा है यार….ऊपर से गर्मी का पसिना सो अलग… शरीर में चिपक जा रहा है भाई ……
…रातों रात एक मित्र नें हमारी टीम का नेतृत्व कर्ता बन हिदायत दे ही ड़ाली…. कि भाई इस बड़े आयोजन में नये प्रयोग से हमलोग रिस्क नहीं ले सकते …जो करते थे वहीं करेंगे ….बस थोड़ा सा ट्विस्ट करेंगे…
हमलोग इस मंडप में पहली बार चमकदार कागज का इस्तेमाल करने जा रहे हैं और प्लास्टिक पेपर का भी… क्योंकि उससमय रौलेक्स की धमक शहर के बारातों तक पहुंच चुकी थी…
इसलिए ज्यादा प्रयोग से बचने की सलाह सबनें मान ली और हम सिंथेटिक साड़ियों पर वापस आ गये …
पर भाभियों ने सिंथेटिक साड़ियों को रिजेक्ट कर दिया…स्टेटस की बात पर ….अब तो आफत आ गई हमलोगों पे…. फिर शिफोन की साड़ियों पर मामला आकर डंन हो गया..
.हम लोगों नें एकतरह के रंग वाले लगभग मिलजुलते रंग वाले साड़ियों को छांट लिया है… मुखिया चा और कप्तान चा ने कहा भी दिया है ढ़ेर सोचे के नऽइखे काल्हु डिग्री भऽइया का जवरे एक जाना जमालपुर बजार चल जऽइह लो एक रंग के कुल्हि साड़ी जवन मन करे कीन लिहऽ लो…
अब सुकुंन ….अब चिंता इस बात की है कि कागज वाले झालर तो लेई से सट जाते थे प्लास्टिक वाले को टांकनें के लिए कोकऽइ कांटी भी खरीद लिया गया है …हल्का सा फेविकोल डाल के कोकऽइ कांटी मार देना है…
अब मानसिक रुप से हमलोग मड़वान के लिए तैयार हैं…
सवेरे से चहल पहल शुरू है….मेरी ड्यूटी चावल बनाने वाले मर्दों के साथ भी है……( क्योंकि मेरा नाम चावल सिंझनें वाला है अब, बांस लगा के तसला पलट दो नहीं तो गिला हो जाएगा भात….ये बतानें का भी मैं एकस्पर्ट हो गया हूं….अब तक) …
एक खेप भात उतर गया है …एकदम ठीक है भात….फरहर भात….बिया लेखा छिंट के उठा लेने लाएक….
उधर आंगन में माड़ो गाड़ा जा रहा है….खुब गीतों की आवाज आ रही है अंगनऽइ से….
भगदड़ मची तो …जिसको देखुं वो पीले रंग के बेसन या फिर अयपन से पुता आ रहा है…धमाल देखनें का मन हो रहा है फिर भी काम में लगा हूं उसे छोड़कर नहीं जा सकता भऽइ….इज्जत का सवाल है…..
मैं अंगनऽई में जाता हूं तो माड़ो गड़ चुका है….मड़प छानें जा रहे हैं लोग…
जिस दीदी की शादी है उसको माड़ो में बुलाया गया है क्योंकि उसके टिकासन भर से ऊंचा ही मंड़प छाना होगा…
.एक सज्जन की सलाह भी आती है ….छांन्ही दु आंगुर ऊंचे रहे के चाहीं लऽइकी के टिकासन से …ना तो बरतिया कहे लगिहें स कि लऽइकी नांट बिया…..
इसी बीच एक भाभी नें मेरे पाजामें में पीछे से पीला वाला अयपन ढ़रका दिया…..यकिन मानिए ओरिजिनल भी झुठा होगा उस पीतरंगिय हारिद्रिक गंधयुक्त अयपन के सामने…
मेरे सामने दिक्कत ये थी कि मात्र दो ही पायजामें थे उसमें से एक अभी कुछ ही देर पहले तो ड़ाला था रेंगनीं पर सुखनें के लिए…
कहनें का आशय अब दोनों पाजामें साथ साथ ही सुखनें वाले थे…
ओसारे में ही भतवान का कच्ची शुरू होने वाला है…नाउ महोदय एक दिन पहले ही अंगेया मांग आये थे शायद …..या फिर उसही दिन मांगा हो सवेरे …
लेकिन बिज्जे का नेवता देकर अभी अभी लौट रहे हैं….पियास लगी है ….उनको …लाला बो भौजी के भतीजी दौड़ी है पन पिअउवा आ एक लोटा पंसेरिया पितरिया लोटा में पानी लेके….
टिकरी त ठीक बा बाकि लकठो त स्साला सामसुनरा के नात बिगाड़ देलस….दांत त गऽड़ रहल बा …
ये फरमान जारी होते ही … सभी सकते में पड़ जा रहे हैं….कई सारे एक्सपर्टिज की बैठकी होती है…
सर्वमान्य नेतृत्वकर्ता की एक सलाह आती है कि अबहीं सुखलका बुनियां में चीनी नऽइखे परल….तनिं जिअतार पाग आ चीनी दुनों पर जाई नुं त बुनिंया आ चीनी दुनों झूर रही ओही में लकठो तुर के फेंट देवे के काम बा….. सभी खुश हो जाते हैं…
तब हलवाई महोदय का बयान आता एके खेप नुं लकठऽउवा बनल बा… अबकी खेप में ठीक हो जाई….बेसनवा मड़ाईल ना रहे…
अब मड़वान भोज के लिए भी लोग आने शुरु हो गये हैं…
(अब समझना ये है कि मड़वान का भोज वधु पक्ष के यहां होता है और भतवांन के भोज वर पक्ष के यहां होता है…मड़वांन का भोज दिन में और भतवांन का भोज रात में होता है और दोनों कच्ची ही होता है..)
पत्तल – चुक्का चल चुका है….भात चलानें वाले अलग तरह के एक्सपर्टिज हैं….. कठौती में ढ़ेर सारा भात लेकर पत्तल दर पत्तल कठौती रख रहे हैं ….और भर-भर अंजुरी दुनों हाथ से भात उठा कर दे रहे हैं …..साथ ही दुन्नों तरहथ्थी से भात को पत्तल पर रखते ही जांत दे रहे हैं…फेरे से दुन्नों अंगुठा से दबा दें रहें हैं भात को….जिससे भत छितरा भी नहीं रहा है और दुनों अंगुठा के दाब से बीच में गहिर भी हो जा रहा है…मानें कि ज्वालामुखी के मुंह जैसा..
….. ताकि पाछा पाछा जो दाल चल रहा है वो दाल को ज्वालामुखी जैसे मुंह वाले भात में ही डाले…सब मेंजन चल रहा है …सबके एकस्पर्ट अलग अलग हैं..अंत में पवितरी चली ….रामरस के बाद … उसके बाद तो लक्ष्मी-नारायण शुरू….
आ इधर मेरा पैजामा में डाला पियरका अयपन भी सुख के कडकड़ा गया है….
………(क्रमशः)