केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने आज पटना में बताया कि केन्द्र सरकार ने किसानों के कल्याण और कृषि क्षेत्र के लिए कई योजनायें शुरू की हैं। बिहार सरकार को इनसे फायदे लेने चाहिए। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना या प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना- ये सभी योजनाएं किसानों और कृषि क्षेत्र को आगे बढ़ाने के रास्ते सुझाती हैं। श्री सिंह ने कहा कि बिहार सरकार किसानों के कृषि से जुड़े कर्जे में राहत को लेकर शामिल हो सकता है। बिहार के किसना 7 प्रतिशत ब्याज देकर दबाव में है, जबकि भारत सरकार ने 3 प्रतिशत ब्याज जैसे राहत वाले कार्य किए हैं। अगर बिहार सरकार किसानों को ब्याज मुक्त बनाना चाहती है तो आशा है कि वे 4 प्रतिशत ब्याज जैसे राहत से किसानों को कर्ज देगी। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और महाराष्ट्र सरकारों ने ऐसा ही किया है और कृषि क्षेत्र में ब्याज के जंजाल से किसानों को मुक्त किया है।
बिहार सहकारी विकास समन्वय समिति द्वारा आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए श्री सिंह ने कहा कि मोदी सरकार ने राज्य सरकार से कृषि से जुड़े संबंधित नियमों और विनियमों को कृषि क्षेत्र में लागू करने का आग्रह किया है। कृषि राज्य का विषय है।
श्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि बिहार समस्त पैक्स एवं व्यापार मंडल द्वारा किसानों से खरीदे गये धान को तय तिथि पर राज्य खाद्यान्न निगम के क्रय केन्द्र द्वारा प्राप्त करने में उदासीनता दिखाई जाती है। इन पैक्स को भुगतान भी काफी कम है जबकि कई जिलों में पैक्स/मंडल द्वारा किसानों से धान खरीदा गया है, जबकि पैक्स कहता है कि इस क्रय से उन्हें 1-2 दिन में ही भुगतान करना पड़ता है। साथ ही इन समितियों के पास आर्थिक संसाधन मदद न होने के कारण, उन समितियों पर पूंजी पर ब्याज का दबाव बढ़ गया है जिस कारण उन्हें भी बिहार सरकार ब्याज राहत देने पर जरूरी करवाई करे तभी पैक्स एवं व्यापार मंडल समयबद्ध तरीके से किसानों से लिये गये कर्ज का भुगतान कर पायेगी, जिससे किसानों को उनकी उपज का मुनासिब मूल्य तय समय पर उपलब्ध हो सके।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने कहा कि केन्द्र सरकार ने अब तक 265 करोड़ रूपये की सहायता नाबार्ड के जरिये बिहार की शुरूआती सहकारिता को वित्तीय मदद प्रदान की है और इन तमाम संस्थानों के सशक्तिकरण के लिये भविष्य में अनेक कार्य करेगी। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के सर्वे के अनुसार, आज 46 प्रतिशत किसान परिवार कर्ज के बोझ में दबा हुआ है जो अनेक संस्थानों एवं गैर सस्थानों से लिये गये हैं तथा इसका प्रतिशत बिहार में 49.99 प्रतिशत है। बिहार और समस्त पूर्वी राज्यों के कई क्षेत्रों को कृषि कर्ज की उपलब्धता में काफी असंतुलन है तथा छोटे एवं बड़े किसानों को मिलने वाले कृषि कर्ज में भी असमानता है।
श्री सिंह ने कहा कि राज्य में कृषि और पशुधन विकास के लिए राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम के जरिए 2015-16 में बिहार राज्य को डेयरी सहकारिता के लिए रु. 149 करोड़ रुपये, आईसीडीपी के लिये 51.05 करोड़ रुपये, शीतगृह सहकारिता के लिए 12.5 करोड़ रुपये और विपणन संबंधी समितियों को 28.10 करोड़ रुपये तथा कुल 240.80 करोड़ रुपये की राशि दी गई। बिहार में सीमित शिक्षण प्रशिक्षण संस्थान है जो यह प्रशिक्षण प्रदान करता है। मैं अवश्य कहूंगा कि बिहार के सहकारी आंदोलन की बढ़ती हुई आवश्यकताओं और आधुनिक तकनीकों, नेतृत्व एवं सहकारी कार्मिकों के मानव संसाधन विकास को पूरा करने के लिए यह अपर्याप्त है। इसलिए मैं चाहता हूं कि एक राष्ट्रीय स्तर का सहकारी प्रबंध संस्थान पूर्वी चंपारण बिहार में खोला जाए, इसके लिए जरूरत के मुताबिक 5 एकड़ की भूमि राज्य सरकार महात्मा गांधी की चम्पारण सत्याग्रह यात्रा के सौ वर्ष पूरे होने के मौके पर आवंटित करे जिससे इसकी स्थापना हो सके। संस्थान के निर्माण हेतु केन्द्र सरकार पूरी वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने कहा कि स्वॉयल हेल्थ कार्ड, प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। इसी कडी में अभी हाल ही में भाजपा सरकार ने किसानों की फसलों की रक्षा के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना खरीफ 2016 से लागू की है। इस योजना में किसान को कम से कम प्रीमियम देना होगा।यह तय किया गया है कि खरीफ में 2 प्रतिशत और रबी में 1.5 प्रतिशत प्रीमियम किसानों द्वारा देय होगा तथा बाकी प्रीमियम केन्द्र सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। श्री सिंह ने कहा कि भारतीय सहकारी आंदोलन आज विश्व के सबसे बड़े सहकारी आंदोलन के रूप में स्थापित है। भारत में सहकारिता की पहुँच गाँव से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक है। सहकारी समितियों ने कर्ज, उर्वरक, बीज आदि मुहैया कराकर किसानों की राह सुगम की है। आज डेयरी सहकारिता ने तो देश-विदेश में अपनी अलग पहचान बनाई है। देश के विकास के लिए जरूरी है कि किसानों की आय में वृद्धि करनी पड़ेगी और इसके लिये कृषि क्षेत्र में फिर से क्रांति लानी होगी। सहकारी समितियां किसान सदस्यों को आर्थिक रूप से सबल करती है।