नंदा दीदी की याद आती है आपको
कभी हमारे आरा शहर ने भी खेलकूद ट्रैक एंड फील्ड में अपना नाम सुमार कर रखा था। हमारे यहां के एथलीट चाहे वो राष्ट्रीय धावक शिवराम सिंह हो या पूर्वी क्षेत्र के भाला फेंक प्रतिस्पर्धा के चैम्पियन यशवंत सिंह उन्हें आखिर कौन नहीं जानता या फिर फुटबॉल के खिलाड़ी सुदर्शन कुमार यादव उर्फ भुण्डा जिन्हें फुटबॉल के स्तरीय और उत्कृष्ट खेल की वजह ने भारतीय स्टेट बैंक ने आत्मसात किया ।अजय सिंह जिन्हें एफ०सी०आई० ने आत्मसात किया।आरा की हॉकी की स्थिति पर एक नजर डालें तो महादेवा रोड़ के निवासी स्व०अवधेश कुमार को कौन भूल सकता है जिन्होंने नेहरू गोल्ड कप में अविभाजित बिहार का तीन बार प्रतिनिधित्व किया।जो अंत में खूंटी खेल महाविद्यालय में हॉकी के कोच बने।चौखम्भा गली निवासी जितेन्द्र भगत अपनी हॉकी खेल की ही बदौलत गोरखपुर में जिला खेल पदाधिकारी पद को सुशोभित कर रहे हैं।आरा के ही हॉकी के गोलकीपर मो०अस्फॉक खॉ को कौन भूलेगा जब वो अलीगढ़ विश्वविद्यालय में पठन हेतु माइग्रेट किए तो हॉकी के नेशनल टीम के पांच गोलकीपरों में उनका नाम था। क्रिकेट की बात करें तो राजीव कुमार पांडेय उर्फ ढक पाण्डे ,प्रमोद सिंह ,हरिद्वार प्रसाद जैसे बहुत नाम है।
ऐसे बहुतेरे नाम हैं जिन्हें बिहार इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, बिहार राज्य पथ परिवहन निगम, बिहार घुड़सवार सैन्य पुलिस , महालेखाकार कार्यालय, बिहार पुलिस अथवा भोजपुर पुलिस ने आत्मसात किया।
हमारे जिले के बखोरापुर निवासी मशहूर ऐथलीट शकन्हैया सिंह अपनें ट्रैक & फील्ड के कीर्तिमान की बदौलत ही हरप्रसाद दास जैन कौलेज में पी०टी०आई०पद पर कार्यरत हैं। कभी शहर के खिलाड़ियों को रोजगार मुहैया कराने को बहुत सारे विभाग का दरवाजा खुला रहता था।
चाहे बिजली बोर्ड हो, या बिहार पुलिस, बिहार राज्य ट्रासंपोर्ट निगम हो, एफ०सी०आई०, क्रिकेट हो सचिवालय हो या राजकीय कृत बैंक इन सभी विभागों में भोजपुर के खिलाड़ियों ने अपना परचम लहराया।
आरा शहर के कई ऐसे नामी-गिरामी नाम रहें हैं जिन्होंने घुड़सवारी की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में शहर सहित जिले का नाम रौशन किया है….
कभी आरा शहर सहित भोजपुर जिले की गौरव रहीं हमारी उड़नपरी नन्दा_सिंह को विशेष कर याद दिलानें की कोशिश कर रहा हूं।
इन आंखों ने कभी नन्दा सिंह यानि नंदादी को भी अपने शहर के आधे-अधूरे ट्रैक एंड फील्ड पर एक से एक कीर्तिमान गढ़ते देखा है। मगध विश्वविद्यालय के तहत होने वाले अंतरमहाविद्यालय एथलेटिक्स मीट में नन्दा सिंह (नंदा दी ) का वो खौफ रहता था कि प्रतिस्पर्धी वाकओवर देनें में अपनी भलाई समझते थे।
हमनें नन्दा दी को वो मान दिया होता तो बेशक इस शहर में वो ताकत थी कि एक से बढ़कर एक उड़नपरी अपने गर्भ से पैदा कर देता।
बक्सर भी कभी अपने बास्केटबॉल खेल के लिए ही जाना जाता था।परन्तु रोजगार की गिरावट नें सबके हौसले पस्त कर दिए।
आरा के महिला खिलाड़ियों ने आखिर यह साबित कर दिया कि गांव-शहर-प्रदेश अगर तालियां बजाने में यदि सक्षम हैं, तो बेटियां में भी वो दम और ताकत है कि तिरंगा हरवक्त लहराता रहे।
आज मुझे अपनी नंदा को सलाम करते हुए उनके माता-पिता एवं अन्य भाई-बहनों को प्रणाम करता हूं और आप सबके हौसले की भी कद्र करता हूं.
चन्द्रभूषण